समाज का विकृत रूप भाग(३)
आज की शिक्षित समाज के लोगों को मैंने अनपढ़ पाया ,
बेटी बनी बहू को भी एक पल में ठुकराया,
मानवता तो बची नहीं जताते बड़ा अपना_ पराया ,
मायका भी है ससुराल भी है गोद में एक मासूम सा बच्चा भी है , लोगों की भीड़ में उसने खुद को अकेला पाया ,
ना जाने हम सब में ही छुपा कहां दानव बैठा ,
जिसने स्त्री के अस्तित्व को मिटाने का नियम बनाया ,
हे ईश्वर आपकी बनाई दुनिया ने स्त्री का क्यों मजाक बनाया ।।——✍️–एकता—-
स्त्री की वेदना का मार्मिक वर्णन
मार्मिक रचना
kavita ki in lino ko padh ke lga ki samaj me aaj bhi log aisa krte h ladkiyo ke sath .bhut hi achha likha h aapne
Nice