सर पे रहे पिता का साया
अंगुली पकङ चलना सिखाया
गिर-गिर कर संभलना सिखाया
मुश्किलों में भी हंसना सिखाया
भय-स्नेह से सही-ग़लत में भेद बताया
हर दांव-पेंच को समझना सिखाया
इस जीवन से परिचय करवाया
मुझे इस धरा पर इक पहचान दिलाया
क़िस्मत के धनी सिर पे जिनकी पिता का साया
अंगुली पकङ चलना सिखाया
गिर-गिर कर संभलना सिखाया
…… पिता पर लिखी गई बहुत सुन्दर पंक्तियाँ
सादर आभार
बहुत खूब
बहुत सुन्दर