स्वतंत्रता की नीब को मिट्टी खा रही है ।

स्वतंत्रता की नीब को मिट्टी खा रही है ।
सरकार को देख आज जनता काँप रही है ।
जो एक दिन तपस्वी राजा राम की माँग कर रहे थे ।
आज वो जनता रावण को कैसे सिंहासनपति बना चुके है ।
स्वतंत्रता की नीब को मिट्टी खा रही है ।।1।।

आजाद, बोस, तिलक, सिंह की कुर्बानियाँ ।
अब हम उस महान स्वतंत्रता सेनानियों का जन्मदिवस मना रहे है ।
शर्म की तो बात ये है, हम उनके साथ खड़ा होके अपनी धरा को अपमानित कर रहे है ।
जो लोग मिट्टी को माता समझते थे, पिता राजा को ।
आज वो लोग किस धरा पे रह रहे है ।
स्वतंत्रता की नीब को मिट्टी खा रही है ।।2।।

और भी दास्तां छिपे है अतीत के धुल उन पन्नों पे ।
किसी ने पुरातन संस्कार मिटायी तो किसी ने खूद को खोया ।
किसी ने दास्तां स्वीकार की तो किसी ने स्वतंत्र होके मरना चाहा ।
सिंह ने आखिरी दम तक युवाओं का विवेकानंद बना ।
आजाद ने तो खूद को अन्तिम प्रणाम किया और मानव जीवन सफल किया ।
बाबा तिलक ने अपनी वाणी में गीता का वाचन किया और खुद को मातृभुमि में लूटा में दिया ।।3।।
— कवि — विकास कुमार

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