गुमनाम-ऐ-ज़िन्दगी
सब कुछ तो छोड़ आया मैं अपना अतीत के पन्नों में
सख्शियत मेरी अब इंसान -ऐ -आम रह गई है
खुशियों की सुबह न जाने कब से नहीं देखी
बस ज़िन्दगी में गमो की शाम रह गई है
बेच कर खुद को हमने खरीदी थी मोहोब्बत किसी की
अब हर खुवाईशैं नीलाम रह गई है
होता नहीं यकीं अब हमको इस इश्क़ पैर
हाथों में चाहत -ऐ -जाम रह गई है
खुसी लौट नहीं सकती फिर से ज़िन्दगी में हमारी
हमारी हर दिल -ऐ -आरज़ू बदनाम रह गई है
उधेड़ -बून और ख़ोज-बीन का सिलसिला शायद अब चलता रहेगा
ज़िन्दगी अब शायद गुमनाम रह गई है …………!!
Very nice
Thanku so much ritu
so nice poetry
Very nice poetry