छोड़ दिए ना हमको
हमे तो मालुम था,
पतझड़ मे पत्ते भी साथ छोड़ देते है,देखकर मेरी तबाही को अपनो भी साथ छोड़ देते है!!
बस तु तो चलती हुई मुशाफीर थी-
ये मतलबी दुनिया बाप को भी छोड़ देते है।
आज वो फिर मिली सड़को पर याद आ गई तु ने तो हवा के रूख देखकर अपनी रंग बदली थी।
उठा लिए ना मेरे मजबुरी का फायदा ना जबाब ही माँगे ना मौका दिए सफाई का।।
आज हमे मालुम हुआ अदा-बफा का जमाना गया दौलत का तलवार,हवाँ की रूख बनाती है रिस्ता यारो।
Gud
Thanks