Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
आज अवध में होली है और , मैं अशोका बन में
आज अवध में होली है और, मैं अशोका बन में। रंग दो मोहे राजा राम , मैं बसी हूँ कन कन में।। आँखे रोकर पत्थर…
मैं हूँ नीर
मैं हूँ नीर, आज की समस्या गंभीर मैं सुनाने को अपनी मनोवेदना हूँ बहुत अधीर , मैं हूँ नीर जब मैं निकली श्री शिव की…
मधु
ये कैसी मृगतृष्णा है, जो न मिठे सदियों तक नज़रों तक आये मधु, आये न पर अधरों तक -विनीता श्रीवास्तव(नीरजा नीर)-
मोर रंग दे बसंती चोला, दाई रंग दे बसंती चोला
ये माटी के खातिर होगे, वीर नारायण बलिदानी जी। ये माटी के खातिर मिट गे , गुर बालक दास ज्ञानी जी॥ आज उही माटी ह…
वाह
धन्यवाद् 🙂
वाह
बहुत धन्यवाद्