चाहत।
काश। मैं टूटे दिलों को जोड़ पाता
आँधियों की राह को मैं मोड़ पाता।
पोंछ पाता अश्क जो दृग से बहे
वक्त की जो मार बेबस हो सहे।
चाहता ले लूँ जलन जो हैं जले
जो कुचलकर जी रहे पग के तले।
क्यों कोई पीये गरल होके विवश
है भरी क्यों जिन्दगी में कशमकश?
दूँ नयन को नींद, दिल को आस भी
हार में दूँ जीत का एहसास भी।
स्वजनों से जो छुटे उनको मिला दूँ
रुग्ण जन को मैं दवा कर से पिला दूँ।
डूबते जो हैं बनूँ उनका सहारा
दे सकूँ सुख, ले किसी का दर्द सारा।
माँग का सिन्दूर बहनों का बचा लूँ
दे सकूँ गर जिन्दगी विष भी पचा लूँ।
चाहता मैं वाटिका पूरी हरी हो
डालियाँ हर पुष्प,किसलय से भरी हो।
अनिल मिश्र प्रहरी।
Bahut sundar
Thanks
Nice
Thanks
वाह
THANKS
Nice
thanks
उत्तम रचना
thanks
Wah
thanks
वाह बहुत सुंदर
thanks
🤔🤔