दंगे
दंगे
—-
रात के छम्म सन्नाटे में,
एक भय की आहट है।
घबराहट की दस्तक है,
कोई है!! का एहसास है।
कल क्या होगा?
की सोच है।
बीते कल तक
जो जिंदगानीया शांति थी
आज उनमें एक जलजला सा समाया है।
ऐसा क्यों है?
क्या हजारों जिंदगियां एक ही झटके में तबाह कर दी जाएंगी!!!
क्या हजारों हंसते खेलते परिवारों के दीपक,
दंगे की आग में झोंक दिए जाएंगे।
क्या यही है हमारी नई पीढ़ी???
बुद्धिहीन चेतनाशून्य!!!!
जिनके कंधों पर भारत देश का मान समाया है।
शर्मसार है यह धरती,
जिसने ऐसे बुद्धिहीनों को
जन्म देकर
अपना बोझ ही बढ़ाया है ।
निमिषा सिंघल
Good
💞💞
Wah👏👏👏👏👏
,❤️❤️❤️❤️
Correct
Thanks dear
Good
🙏🙏🇳🇪
गम्भीर रचना
🙏🙏🇳🇪🇳🇪🌺🌺
Nyc
👍👍