Categories: शेर-ओ-शायरी
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जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
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दुर्योधन भले हीं खलनायक था ,पर कमजोर नहीं । श्रीकृष्ण का रौद्र रूप देखने के बाद भी उनसे भिड़ने से नहीं कतराता । तो जरूरत…
आरज़ू
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आसमां ये मुझे कभी खरीद नहीं सकता मैं पाँव हमेशा जमीं पे टी’काके रखता हूँ ।।
जिंम्मेदारियों का बोझ मैं उठा’के रखता हूँ मेले में बेटे को काँधे पे बिठा’के रखता हूँ ।। आसमां ये मुझे कभी खरीद नहीं सकता मैं…
Nice line
Nice
शास्त्री जी आपका और मेरा साथ कितना पुराना है और मैंने कभी भी क्या से भरा हुआ नहीं पाया आप सभी के साथ समान व्यवहार करते हैं आपके चेहरे पर जो कांति है मुझे बहुत अच्छी लगती है
बहुत ही सुंदर लेखनी