।। दुषित व्यवस्था व वेतन की माँग ।।

।। दुषित व्यवस्था व वेतन की माँग ।।

अब किसी मुद्दे पर प्रेम से बात से होती कहाँ?
जो समाधान जनहित के लिए निकले किसी समस्या का ।
अब तो संसद में सिर्फ बहस ही छिड़ी रहती है ।
कुछ लोग बहुत अच्छे बोलते जनकल्याण के लिए,
उन्हें चुप करा दिया जाता, अपने स्वार्थ कल्याण के लिए ।
वेतन-व्यवस्था की बात, कभी छिड़ती नहीं क्या संसद में?
आमजनता की मौलिक-आवश्यकता तक पुरी नहीं होती इस देश में,
और सिंहासनपति भौतिक-दुनिया जीते ।
अजब निराले है राजा आप मेरे, हम दीन-दुःखी प्रजा आपके हैं ।
अब आप ही बताइये सरकार मेरे, आपकी कौन-सी व्यवस्था सुव्यवस्थित ढ़ंग से चलती है ।
आपका वेतन लाख है, और आपकी जनता की वेतन मिट्टी के भाव है ।
आप एक माह में एक लाख का खर्च करते खूदपे ,
और आपकी जनता एक माह में तीस बार मरते आपके नजर के सामने ।
क्या यहीं आपकी राष्ट्र-व्यवस्था है ?क्या यहीं आपकी राष्ट्र की वेतन-व्यवस्था है ?
क्या यहीं आपका सदाचार है ? क्या यहीं आपके राजनीतिज्ञ और अर्थशास्त्री का नीति है ?
बदलो-बदलो देश की कुव्यवस्था को बदलो-बदलो देश की वेतन-व्यवस्था को ।
अगर नहीं बदल सकते देश की कुव्यवस्था को तो भूल जाओ कि अब कभी हम समृध्द बनेंगे ।।
— विकास कुमार

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