मैंने देखा है ,शैतान ! इंसानों में
दानव तो है, यूं ही बदनाम
ग्रंथ-पुराणों में ,
मैंने देखा है,शैतान! इंसानों में।
रूह कांप जाए; हृदय फट जाए,
हैवानियत की हदें पैर फैलाए।
शर्मसार होती है मानवता ;
सुर्ख़ियों के गलियारों में,
मैंने देखा है, शैतान! इंसानों में।
वो कोमल सी,
नन्ही पंखुड़ी जैसी,
करहाहट ; उसकी पपीहे जैसी,
पर; नोचता रहा ,उसे वो हैवान!
बहता खून; उसके शोषण की कहानी थी ।
फिर भी बच जाते , ऐसे खूंखार!
सत्ता ,कानून के दलालों से,
मैंने देखा है, शैतान! इंसानों में।
—-मोहन सिंह मानुष
सुंदर रचना
बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏
मार्मिक रचना। बहुत ही भावुक
हार्दिक अभिनन्दन 🙏
बहुत कुछ कह दिया है आप ने
सादर अभिनन्दन , भावों को प्रोत्साहन देने के लिए 🙏
बहुत हीं मार्मिक चित्रण
बहुत बहुत आभार सर 🙏
सुन्दर रचना
सादर धन्यवाद 🙏
शानदार