वोही तो लौटी हैं आज बन खंजर सीने में
क्या हुआ आज एक हाथ ही तो छूटा है वक्त-बेवक्त कईयों को तूने भी लूटा है लूटते हुए जो खुशियाँ खिलीं थी सीने में वोही…
क्या हुआ आज एक हाथ ही तो छूटा है वक्त-बेवक्त कईयों को तूने भी लूटा है लूटते हुए जो खुशियाँ खिलीं थी सीने में वोही…
उम्मीद टूटी तो रोता क्यों है ख़ुद पे भरोसा खोता क्यों है ……यूई
दिल से गर तूं साँचा है यार के दिल का कांचा है ……यूई
वफ़ा कहने को बस एक लफ्ज निभाना इसको है सबसे सहज़ अडिग है गर तेरा खरा ईमान ता-उमर पयेगा साथ निष्ठावान ……यूई
इल्ज़ाम-ए-बेवफाई सच तो नही झूठे तेवर आपको जच्ते नही आईने आपके घर में टूट गए या आपने सँँवरना छोड दिया ……यूई
क्या फिज़ा यहाँ की बदरंग हुई यहाँ सोच ही सब की तंग हुई ……यूई
बिकती नही वफाएँ बाज़ारों में दिखती भी नही यह हजारों में ……यूई
बदला ख़ुद को तो कुछ पा जाएगा ना बदला ख़ुद को सब खो जाएगा ……यूई
वफाएँ चाहते हो सच मैं ही पाना दिल को बना लो वफादार तुम जाना …… यूई
बेवफाईया जो तूने उमर भर लुटाई हैं वोही लौट कर वापस पास तेरे आयीं हैं …… यूई
तुझे पाने वाला ख़ुद का नसीब कहता है लुटने वाला ख़ुद को बदनसीब कहता है हैं दोनों ही तेरी राह् के भटके मुसाफिर तूँ तो…
वफा वोह अनमोल कमाई है जो सबके नसीब ना आयी है …… यूई
ता-उमर लगायी दौलत कमाने मैं तूने जो कमाया अब वोही तो तेरा है बंदिया बेवफ़ाई पे मेरी क्यों तूँ इतना बिखर गया वफ़ा तूने क्मायी…
उम्मीदों की तामीर की ख्वाबों की बुनियाद पे अब क्या शिकवा करे अपनी ही बुनियाद से …… यूई
इंतज़ार में रखना है तो फितरत उम्मीद की इंतज़ार में मरना है किस्मत विश्वास की …… यूई
हमनें पूछा उम्मीद से फिर दे गई धोखा उम्मीद ने कहां मैं और धोखा यह तो तेरा तुझको ही धोखा …… यूई
उम्मीद की तो फितरत है धोखा किस उम्मीद ने तुझे है रोका …… यूई
ज़िन्दा रहना उम्मीद के सहारे है बस रहना जैसे डूबते किनारे …… यूई
तेरे हौंसलों में मैं ज़िन्दा थी तेरे जाते ही मैं बस खो गयी शरीर तेरा था तूँ ले जाता मन का साथ तो दे जाता…
डूबना मेरी कश्ती का हो गया था तय तभी जब छोड़ साथ अपनों का अर्पण किया था तुझे सभी …… यूई
मालूम हैं मुझे के में ना खरा उतरा तेरी आस्मानी उम्मीदो के पैमानों पर हाँ मैँ ही तुझे यह समझा ना पाया इंसानो को नही…
मैंने उम्मीद की इसका गम नही इससे समझा के तूँ मेरा हमदम नही …… यूई
ऐसा नही के उम्मीद पूरी नही होती होती है पर हजारों में एक होती है …… यूई
गुनाह् नही, कोई उम्मीद करना गुनाह् है , उम्मीद को ना-उम्मीद करना …… यूई
उम्मीद तेरी यह कैसे होती पूरी इमारत की तामीर थी हवाओं में …… यूई
वफाएँ हासिल करने का दम भरते हो सर उठा कर चेहरा तो देख आईने में …… यूई
अता ना की होती यह गर रोशनी ख़ुद की तूने सोच तो मैं क्या ही पता लिखना तो कभी ना भाता …… यूई
लिखवाता जा रहा है तूँ मुझसे नाम मेरा हो रहा है रोशन मैंने भी ना रखा कुछ मुझमें रोज़ किया तेरा नाम रोशन …… यूई
कहने को बस नाम हो रहा मेरा तू तो जानता है यह है काम तेरा …… यूई
उसकी रज़ा में रह्ता हूँ ख़ुद में ही मस्त रह्ता हूँ खामोशियाँ मेरा गहना हैं मैं उनमें उसमें रह्ता हूँ ….. यूई
खामोश हूँ कमजोर नही जमाने ने मारा है मुझे मैंने जमाने को नही अबकी बारी मेरी है ….. यूई
खामोशियोँ को मेरी कमजोरी ना समझ हालत को समझा है मैंने, हारा नही ….. यूई
मैं खामोश हूँ खामोश ही रह्ने दो सिमटा हूँ ख़ुद में सिमटा ही रह्ने दो ….. यूई
जब सब शोरो-ओ-गुल से खेला लिए तब खामोशियोँ की चादर ओड़ा लिए ….. यूई
ख़्वाहिशें दिल में ही दफन होती हैं कह्ते हैं दिल की भी ज़ुबान होती है यह कभी ना बोल के बयाँ होती है खामोशियाँ ही…
कह्ते हैं सब में रह्ता तूं क्यों इतने दुःख सह्ता तूं क्या इससे बेहतर काम नही या हममें तुझको मान नही ….. यूई
कोई कहता तू ऐसा है कोई कहता तूं वैसा है मिल जाऊँ कभी तुमसे तो कैसे तेरी पहचान करूँ ? ….. यूई
मैं इतने जो पाप करूँ क्यों मैं इतना नीचे गिरूँ क्या मैं तेरे जैसा नही या तेरा मैं वो रुप नही ….. यूई
मुझे ख़ुद की लगी रहती है तुझे सबकी पड़ी रहती है मैं ख़ुद के समेट ना पाता हूँ तू सबके दुःख हर जाता है …
मैं सोच ही ना पाता हूँ कैसे तू यह सब करता है सबके अन्दर बसता है सबको ख़ुद में रखता है ….. यूई
ख़ुद का करके सब देख् लिया ख़ुद का चाह के भी देख् लिया अंत में जब सबको जोड़ पाया पाया तुझसे आगे ना सोच पाया…
नास्तिक सब कह्ते हैं मुझको क्यों ना तेरे दर पे जाता हूँ अब कैसे समझाऊं मैं सबको तुझको हर दर पर तो पाता हूँ …
तूने सोच का जो बीज भरा कुछ तो सोच के होगा भ्ररा उस सोच की लाज रखता हूँ हर कदम सोच के बडता हूँ …
हर दिन इक जीवन जीता हूँ उसको हाँ पर पूरा जीता हूँ जो भी तूने आज कम दिए उनको पूरा करके मरता हूँ …..…
जब से यह एहसास हुआ मेरा है जो सब कुछ यहा वोह असल में तो तेरा है तबसे हलका हो गया हू उड़ने की अब…
कहते है जो कुछ होता है सब यहा होती सब में सिर्फ़ तेरी मर्ज़िया है होता था पहले कभी शक़ मुझको अब बची ना कोई…
जाने क्यों कोई शिकायत नही तुमसे मालूम नही के कैसा तुझ्से रिश्ता है हाथ उठ भी नही पाते दुआ में तेरी रह्मत तेरी पहले ही…
ए मालिक मेरी चाहतों का अंत ना हुआ तेरी रहमत और बरकतो का अंत ना हुआ शायद मेरी चाहतो में थी छुपी रज़ा तेरी या…
पृथ्वी, सूरज, तारे और ग्रह सब चलते ही तो रहते है में भी ब्रह्मांड का हिस्सा हू फिर क्यों में आराम करू ………
हम उसकी रज़ा में जीते है जिसमे सब चलता रहता है सदियों से यह ऐसा ही है जैसा यह अबके दिखता है ………
Please confirm you want to block this member.
You will no longer be able to:
Please note: This action will also remove this member from your connections and send a report to the site admin. Please allow a few minutes for this process to complete.