वो कहती है
वो कहती है लिखा हुआ आज सुना दो मैंने सिर्फ इतना ही कहा जुबाँ लड़खड़ा जाएगी एहसास बड़े गंभीर हैं -मनीष
वो कहती है लिखा हुआ आज सुना दो मैंने सिर्फ इतना ही कहा जुबाँ लड़खड़ा जाएगी एहसास बड़े गंभीर हैं -मनीष
न तन पर कपड़े न पैरों में चप्पल का होश होता है, ये बचपन बस अपने आप में मदहोश होता है, इच्छाओं की दूर तलक…
अदब से झुकने की कला भूल गए, मेरे शहर के लोग अपना गुनाह भूल गए, भटकते नहीं थे रास्ता कभी जो अपना, आज अपने ही…
खेल खेलने बैठा तो खिलाड़ी न मिला, एक बन्दर को उसका मदारी न मिला, ज़िन्दगी की बिसात में हम कुछ फंसे ऐसे, कि हमारी चालोन…
यूँ तो नज़रन्दाज़ नहीं करते लोग खामियाँ मेरी, तो मैं भी क्यूँ दिखाऊं खुलकर उनको खूबियां मेरी, अभी सीख रहा हूँ तैरना तो हंसी बनाने…
उनकी तरफ से तो इक इशारा भी ना हुआ… ऒर हम कम्बखत… उनसे इश्क़ कर बैठे हैं…. राजनंदिनी रावत
कोई तो ऐसा मिले ‘खुदा’…. जब भी तेरे दर पे आऊँ…. उसके संग ही आऊँ ! राजनंदिनी रावत-राजपूत
मै जब से तेरी एक तस्वीर बनाने में वयस्त हूँ, मैं तब से अपने ही ख्यालों में वयस्त हूँ, रंग तो बहुत हैं ज़माने में…
बनाकर कागज़ की कश्तियाँ पानी में बहाते नज़र आते थे, एक रोज़ मिले थे वो बच्चे जो अपने सपने बड़े बताते थे, बन्द चार दीवारों…
लौट आने दो उस हवा को गुनगुनाने दो उस हवा को वह आयी है गीत सुनाने थरथराने दो उस हवा को। अशोक बाबू माहौर
बहुत दूर तलक जाकर भी कहीं दूर जा पाते नहीं, परिंदे यादों के तेरी मेरे ज़हन से उड़ पाते नहीं, बनाकर जब से बैठे हैं…
रोज प्यार के गीत गुनगुनाए हर कोई मन , मुसीबतों को ,सबक सिखाए हर कोई मन। नाच ले ,झूम ले मस्ती भरे , मधुर तरानों…
कदम दर कदम मै बढाने चला हूँ। सफर जिन्दगी का सजाने चला हूँ। ज़माने की खुशियाँ जहाँ पें रखकर दौर जिन्दगी बनाने चला हूँ।। योगेन्द्र…
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