Panna
चंद सिक्के मिले हैं
October 3, 2025 in ग़ज़ल
चंद सिक्के मिले हैं मुझे दिनभर की मज़दूरी के,
आँखों में आँसू आते हैं मेरी मजबूर मजबूरी के।
कौन उठाए आवाज़ आज नाइंसाफ़ी के खिलाफ़,
बहुत मालदार होते हैं शख़्स यहाँ जी-हुज़ूरी1 के।
क्यों लिखें मुकम्मल 2 दास्ताँ 3 हम अपनी यारों,
बहुत सारे मायने निकलते हैं कहानी अधूरी के।
सोचता हूँ चला जाऊँ अब दूर कहीं मैं अपनों से,
बहुत करीब लगने लगते हैं सबको लोग दूरी के।
जी रहे हैं हम मजबूर रुस्वाइयों 4 के बीच मगर,
मर भी नहीं सकते यहाँ चुकाए बिना दस्तूरी5 के।
1. चापलूसी; 2. पूरी; 3. कहानी; 4. अपमान; 5. कमीशन।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
अब कहाँ वो ज़माना
October 3, 2025 in ग़ज़ल
अब कहाँ वो ज़माना रहा जाँ लुटाने का,
रिवाज़¹ नहीं अब रूठे को मनाने का।
किसके हवाले करें आज दिल हम अपना,
गुज़र गया वह वक़्त दिल लगाने का।
हदीस²-ए-गम-ए-यार सुनेगा अब कौन,
नया रिवाज़ है बज़्म³  से उठ जाने का।
रब्त4  सब संग-ओ-ख़िश्त 5 हो गए हमारे,
कहाँ वो सुरूर6 रहा अब करीब आने का।
फ़ज़ा7 बेनूर अब, हर सितारा है ग़ुम कहीं,
वक़्त है तारीकी-ए-क़फ़स8 में जाने का।
1. परंपरा; 2. किस्से; 3 महफ़िल; 4. संबंध; 5. पत्थर और ईंट; 6. खुशी;7. माहौल; 8. पिंजरे का अंधेरा।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
बेगाने है वो
October 3, 2025 in ग़ज़ल
बेगाने है वो तो फिर अपने से लगते हैं क्यों,
आने से उनके मौसम आख़िर बदलते हैं क्यों।
आँखों में जो जम गए थे हिज्र 1 के आँसू,
वस्ल 2 के वक्त वो आख़िर पिघलते हैं क्यों।
नहीं है अगर उनको हमारी-सी मोहब्बत,
इश्क़ से हमारे वो इतना जलते हैं क्यों।
हमारे दीदार 3 से अगर इतने परेशाँ हैं वो,
दरीचे4 में हर रोज़ आख़िर मिलते हैं क्यों।
मान लूँ कि नहीं है उनसे नायाब मोहब्बत,
ज़िंदगी से ज़्यादा वो आख़िर लगते हैं क्यों।
हर कोई जुड़ा है इस जहाँ में मोहब्बत से,
न हो इश्क़ जमीं से, बादल बरसते हैं क्यों।
1. विरह; 2. मिलन; 3. मुलाक़ात; 4. खिड़की।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
लब भी न हिले
October 3, 2025 in शेर-ओ-शायरी
लब भी न हिले और हमारी बात हो गई,
आधी-अधूरी ही सही, मुलाक़ात हो गई।
आपकी यादों को
October 3, 2025 in ग़ज़ल
आपकी यादों को अश्कों में मिला पीते रहे,
एक मुलाक़ात की तमन्ना में हम जीते रहे।
आप हमारी हक़ीक़त तो कभी बन न सके,
ख़्वाबों में ही सही, हम मगर मिलते रहे।
आप से ही चैन-ओ-सुकूँन वाबस्ता1 दिल का,
बिन आपके ज़िंदगी क्या, हम बस जीते रहे।
सावन, सावन-सा नहीं तनहाई के मौसम में,
आपको याद करते रहे और बादल बरसते रहे।
जब देखा पीछे मुड़कर हमने आपकी चाह में,
सूना रास्ता पाया, जिसपे तनहा हम चलते रहे।
1. जुड़ा हुआ।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
क्यों याद आता
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
क्यों याद आता है वो सब, जो कभी हुआ ही नहीं,
इक रिश्ता थाम लेता है हाथ, जो कभी था भी नहीं।
आज की शाम
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज की शाम, शमा से मैं बातें कर लूँ,
उनके चेहरे को अपनी आँखों में भर लूँ।
फ़ासले बचे हैं क्यों उनके मेरे दरमियान1,
चल कुछ कदम, कम ये फ़ासले कर लूँ।
प्यार करना उनसे मेरी भूल थी अगर,
तो ये भूल मैं एक बार फिर से कर लूँ।
उनके संग चला था ज़िन्दगी की राहों में,
बिना उनके ज़िन्दगी बसर2 कैसे कर लूँ।
परवाने को जलते देखा तो ख़्याल आया,
आज की शाम, शमा से मैं बातें कर लूँ।
1. बीच; 2. गुज़ारना।
जब ज़माने ने
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब ज़माने ने उसको सताया होगा,
मेरा नाम कैसे होंठों में दबाया होगा।
सवालों की जब झड़ी लगी होगी,
जवाब में कैसे मुझको छुपाया होगा।
कहीं कोई तलाश न ले कमरा उनका,
मेरी नज़्मों को ये सोच जलाया होगा।
कहीं किसी ने देख तो न लिया होगा,
जब मेरा अक्स अश्कों में छाया होगा।
कर लूँ कबूल जुल्म-ए-इश्क़ करने का,
इक बार तो ये ख़्याल उसे आया होगा।
आज कुरेद गया वो
October 3, 2025 in ग़ज़ल
आज कुरेद गया वो अरसे से जमे जज़्बातों को,
कुछ बूँदें फिर से भिगो गईं सूखे रुख़सारों 1 को।
दर्द आज फिर से झाँकने लगा तह-ए-दिल से,
शायद कोई भरने आया है दिल की दरारों को।
दस्तक दे ही जाता है अक्सर तसव्वुर2 उनका,
चैन कहाँ से आएगा अब मेरे बेचैन करारों को।
सर्द ख़यालों को तपिश का आज हुआ एहसास,
दे रहा है शायद कोई हवा बुझे हुए अलावों3 को।
मुन्तज़िर4 हूँ फिर वो चला आएगा मेरे कूचे 5 में,
बेज़ार 6 नज़रों से नाप रहा हूँ मैं तनहा राहों को।
1. गाल; 2. कल्पना; 3. आग; 4. इंतज़ार करने वाला; 5. गली; 6. उदास।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
तेरी आवाज़ में
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
तेरी आवाज़ में अक्सर हम डूब जाते हैं,
तुझसे हम हमेशा कुछ कह नहीं पाते हैं।
हाल-ए-दिल कैसे करें हम बयाँ अपना,
दिल की धड़कन में तुझे ही सजाते हैं।
ग़ालिब बना दिया हमें तेरी मोहब्बत ने,
तनहाइयों में बस तुझे ही हम गाते हैं।
यक़ीन है एक दिन मिलेंगी निगाहें तुझसे,
हर लम्हा सोचकर यही हम बिताते हैं।
शम्मा से बस एक मुलाक़ात की ख़ातिर,
परवाने पागल पल भर में जल जाते हैं।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
घुल गया उनका अक्स
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
घुल गया उनका अक्स कुछ इस तरह अक्स में मेरे,
आईना अब ज़रा सा भी न काबिल-ए-ऐतबार रहा।
हमारी मोहब्बत का असर, हुआ उन पर इस क़दर,
निखरी ताबिश-ए-हिना1, न वह रंग-ए-रुख़्सार2 रहा।
दिखाए मौसम ने ऐसे तेवर, हमारी मोहब्बत पर
न वह बहार-ए-बारिश रही, न वह गुलज़ार 3 रहा।
भरी बज़्म4 में हमने अपना दिल नीलाम कर दिया,
क़िस्मत थी हमारी कि वहाँ न कोई ख़रीदार रहा।
तनहाइयों में अब जीने को जी नहीं करता हमारा,
हमें ख़ामोश धड़कनों के ठहरने का इंतज़ार रहा।
1. मेंहदी की चमक; 2. गालों का रंग; 3.फूलों का बगीचा; 4. महफ़िल।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
हम अपना हाल-ए-दिल
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम अपना हाल-ए-दिल आपसे कहते रहे,
बेगाना आप हमको जाने क्यों समझते रहे।
आज तक कोई सबक पढ़ा न ज़िंदगी में,
आपकी आँखों में जाने क्या हम पढ़ते रहे।
इक अरसा हो गया, हम मिल न सके आपसे,
इक मुलाक़ात के इंतज़ार में तनहा मरते रहे।
न हुई सुबह, न कभी रात शहर-ए-दिल में,
कितने ही सूरज उगे, कितने ही ढलते रहे।
अनजानी राहों में चलते रहे उनकी तलाश में,
चलना ही है नसीब हमारा, सो हम चलते रहे।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
तुझसे रू-ब-रू हो लूँ
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुझसे रू-ब-रू1 हो लूँ, दिल की आरज़ू2 है,
कह दूँ तुझसे एक बार, तू मेरी जुस्तुजू3 है।
भँवरा बनकर भटकता रहा तेरे तसव्वुर 4में,
चमन में चारों तरफ़ फैली जो तेरी ख़ुशबू है।
जल ही जाता है परवाना होकर पागल,
जानता है, ज़िंदगी दो पल की गुफ़्तगू5 है।
दास्तान-ए-दर्द-ए-दिल कैसे कहे तुझसे,
नहीं ख़बर मुझे, कहाँ मैं और कहाँ तू है।
शायर-ए-ग़म तो मैं नहीं हूँ मगर, दिलबर,
मेरे दिल से निकली हर नज़्म में बस तू है।
1. आमने-सामने; 2. इच्छा; 3. तलाश; 4. कल्पना; 5. बातचीत।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
उनके चेहरे से
October 3, 2025 in हिन्दी-उर्दू कविता
उनके चेहरे से नज़र है कि हटती नहीं,
वो जो मिल जाए अगर, चहकती कहीं।
वो जो हँसी जब, नज़रें मेरी बहकने लगीं,
मन की मोम जाने आज क्यों पिघलती गई।
भूली-बिसरी निगाहें जो उनसे टकरा गईं,
वो बारिश बनकर मुझ पर बरसती गई।
सदियों से बंद किए बैठे थे इस दिल को,
मगर चुपके से वो इस दिल में उतरती गई।
आँखों का नूर1 करता मजबूर निगाहों को,
दिल के आईने में उनकी तस्वीर बनती गई।
हो गई क़यामत 2 वो सामने जो आ गए,
दर्द-ए-दिल से आज ग़ज़ल निकलती गई।
1. प्रकाश; 2. प्रलय।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
बर्बाद-ओ-बेकस दिल
October 3, 2025 in ग़ज़ल
बर्बाद-ओ-बेकस1 दिल का कोई सहारा भी हो,
उनके मकाँ-ए-दिल में एक कोना हमारा भी हो।
जो बात ज़ेहन 2 में थी, वो ज़ुबाँ पर आ न सकी,
कहा नहीं हमने जो, शायद उन्होंने सुना भी हो।
शाम-ओ-सहर 3 उनके ख़्यालों में खोए रहते हैं,
तसव्वुर 4 में उनके, इक ख़्याल हमारा भी हो।
आए हैं कई सारे ख़त हमें चाहने वालों के आज,
इन ख़तों में कोई ख़त काश उनका लिखा भी हो।
हमारी हर नज़्म-ओ-लफ़्ज़ में बस वही हैं नज़र,
उनकी बातों में कभी तो ज़िक्र हमारा भी हो।
1. तबाह और मजबूर; 2. मन; 3. शाम और सुबह; 4. कल्पना।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
अक्स सारे गुम
October 1, 2025 in शेर-ओ-शायरी
अक्स¹ सारे गुम हैं कहीं, आईने अकेले हैं,
साथ चलते हैं लेकिन, काफ़िले² अकेले हैं।
1. प्रतिबिम्ब; 2. यात्रीदल।
इक मुखौटा
October 1, 2025 in ग़ज़ल
इक मुखौटा है, जिसे लगा कर रखता हूँ,
जमाने से ख़ुद को मैं छुपा कर रखता हूँ।
दुनिया को सच सुनने की आदत नहीं,
सच्चाई को दिल में दबा कर रखता हूँ।
जमाने की सूरत देख बस रोना आता है,
झूठी हँसी चेहरे से सटा कर रखता हूँ।
आएगी ज़िंदगी कभी लौट के मेरे पास,
इंतज़ार में पलकें बिछा कर रखता हूँ।
आज इक नया मुखौटा लगाकर आया हूँ,
मैं कई सारे मुखौटे बना कर रखता हूँ।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
यह दुःख ही सच्चा अपना
June 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी
सुख के झूठे मुखोटो का क्या मौल
यह दुःख ही सच्चा अपना, जो हमने झैला है
दुनिया भयी बाबरी
June 15, 2020 in मुक्तक
कोरोना बीमारी के लगातार बढने के बावजूद किसी भी तरह की कोई सावधानी लेने से लोग परहेज कर रहे हैंं
यह ऐसा समय है जब सबको अपने और अपने परिवार का ख्याल रखना चाहिये और हर संभव सावधानी रखनी चाहिये
लेकिन लोग सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ाते हुये, बेपरवाह, बिना किसी काज के घूमते आपको हर जगह मिल जायेंगे, इसी स्थिति पर दो लाइन प्रस्तुत हैं –
दुनिया भयी बाबरी, छोड़ समझ को संग
बैठ के देखत रहो, अब तरह तरह के रंग
                                            क्या दूं उस सरकारी अफ़सर को
June 1, 2020 in मुक्तक
क्या दूं उस सरकारी अफ़सर को?
जो मांग रहा है हजार का हर्जाना
मेरी दो सो की दिहाड़ी से
हर बार टूट जाते है अहसास
May 18, 2020 in मुक्तक
बेहिसाब अहसासों को हम सिमटे कैसे
कहां हो पाता है मुकम्मल मकां-ए-नज्म मिरा
हर बार टूट जाते है अहसास,
ख्वाबों के जैसे
बन रंगरेज इस तरह रंग डाले
March 10, 2020 in शेर-ओ-शायरी
बन रंगरेज इस तरह रंग डाले,
रंग ए रूह और भी निखर जाए।
मिले गले इस तरह दोस्त बनकर,
दुश्मनी हो अगर, टूटकर बिखर जाए।।
जिंदगी के किनारे
December 30, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जिंदगी के किनारे रहकर जिंदगी गुजार दी
मझधार में आये तो जिंदगी ने दबोच लिया
मिलना ना हुआ
February 27, 2019 in शेर-ओ-शायरी
कितनी मन्नतें माँगी, तब तुझसे मिलना हुआ,
मगर मिलकर भी, हमारा मिलना ना हुआ।
                        जानता हूं तुम नहीं हो पास
July 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी
जानता हूं तुम नहीं हो पास,
समझता भी हूं|
मगर जो मैं महसूस करता हूं हर पल
उसे झुठलाऊं कैसे?

जिंदगी
April 13, 2018 in शेर-ओ-शायरी
गुजरती जाती है जिंदगी चुपके से लम्हो में छुपकर
बहुत ढूढता हूं इसे, मगर कभी मिलती ही नहीं
नज्म
March 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी
 इक नज्म है जो दबी हूई है दिल की दरारों में
 आज फिर बहुत कोशिश की मगर निकल ना पाई
जिंदगी
March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
जितना जिंदगी को पास बुलाओ
जिंदगी उतना दूर हो जाती है
मंजिलो पर नजर रखते रखते
पैरों से राह गुम हो जाती है
मुक्तक
March 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी
देखा है दुनिया को अपनी दिशा बदलते
अपने लोगो को अपनो से आंखे फ़ेरते
कतरा कतरा जिंदगी का रेत फिसलता जाता है
देखा है जिंदगी को मौत में बदलते
वक्त
March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
नहीं मालूम कहां गुम है वक्त
सब ढूढ़ना चाहते है
मगर ढ़ूढ़ने को आखिर
वक्त कहां है
सब कहते फिरते है,
वक्त निकालूंगा
वक्त निकालने को आखिर वक्त कहां है
मुखौटा
January 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता
इक मुखौटा है जिसे लगा कर रखता हूं
जमाने से खुद को छुपा कर रखता हूं
दुनिया को सच सुनने की आदत नहीं
सच्चाई को दिल में दबा कर रखता हूै 
बस रोना आता है जमाने की सूरत देखकर
मगर झूठी हंसी चेहरे से सटा कर रखता हूं
आयेगी कभी तो जिंदगी लौट के मेरे पास
इंतजार में पलके बिछा कर रखता हूं
आज इक नया मुखौटा लगा कर आया हूं
मैं कई सारे मुखौटा  बना कर रखता हूं
नजरे
January 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी
इक अरसे बाद नजरे मिली उनसे हमारी
नजरों ने पहचाना और अन्जान कर दिया
दिन, महीने और साल
January 1, 2018 in शेर-ओ-शायरी
दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं
और इक दिन आदमी भी इनमें गुजर जाता है|
मिलना न हुआ
March 3, 2017 in शेर-ओ-शायरी
कितनी मिन्नतों के बाद में मिला तुझसे
मगर मिलकर भी मेरा मिलना न हुआ
क़ी कई बातें, कई मर्तबा हमने
मगर इक बात पे कभी फैसला ना हुआ
अब नहीं होगा जिक्र
February 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी
अब नहीं होगा जिक्र आपका हमारे आशियाने में
न होगी नज्म कोई आपके नाम से
दिन, महीने और साल
December 28, 2016 in शेर-ओ-शायरी
दिन, महीने और साल गुजरते जाते हैं
और इक दिन आदमी भी इनमें गुजर जाता है|
बात से बात चले
December 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी
गुफ़्तगु बंद न हो, बात से बात चले
मैं तेरे साथ चलूं, तू मेरे साथ चले|
                                            आज कुछ लिखने को जी करता है
November 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी
आज कुछ लिखने को जी करता है
आज फिर से जीने को जी करता है
दबे है जो अहसास ज़हन में जमाने से
उनसे कुछ अल्फ़ाज उखेरने को जी करता है
दास्ता ए जिंदगी
October 18, 2016 in शेर-ओ-शायरी
चंद पन्नों में सिमट गयी दास्ता ए जिंदगी
अब लिखने को बस लहू है, और कुछ नहीं|
इक रब्त
September 25, 2016 in शेर-ओ-शायरी
इक रब्त था जो कभी रहता था दरम्या हमारे
किस वक्त रूखसत हुआ, खबर नहीं|
                        कफ़स
August 20, 2016 in ग़ज़ल
इन परों में वो आसमान, मैं कहॉ से लाऊं
इस कफ़स में वो उडान, मैं कहॉ से लाऊं   (कफ़स  = cage)
हो गये पेड सूने इस पतझड के शागिर्द में
अब इन पर नये पत्ते, मैं कहॉ से लाऊं
जले हुए गांव में अब बन गये है नये घर
अब इन घरों में रखने को नये लोग, मैं कहॉ से लाऊं
बुझी-बुझी है जिंदगी, बुझे-बुझे से है जज्बात यहॉ
इस बुझी हुई राख में चिन्गारियॉ, मैं कहॉ से लाऊं
पथरा गयी है मेरे ख्यालों की दुनिया
अब इस दुनिया में मुस्कान, मैं कहॉ से लाऊ
                        चमकता जिस्म, घनी जुल्फ़े
July 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी
चमकता जिस्म, घनी जुल्फ़े, भूरी भूरी सी आंखे
यही है वो मुज़रिम जिसने कत्ल ए दिल किया है
– Panna
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