by Panna

क्या करें नादान है

October 14, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ऐसा नहीं कि कोई नहीं जहान में हमारा यहां
दोस्त है कई मगर, क्या करें नादान है

by Panna

आज की शाम

October 9, 2015 in ग़ज़ल

आज की शाम शमा से बाते कर लूं
उससे चेहरे को अपनी आखों में भर लूं

फासले है क्यों उसके मेरे दरम्या
चलकर कुछ कदम कम ये फासले कर लूं

प्यार करना उनसे मेरी भूल थी अगर
तो ये भूल एक बार फिर से कर लूं

उसके संग चला था जिंदगी की राहों में
बिना उसके जिंदगी कैसे बसर कर लूं

परवाने को जलते देखा तो ख्याल आया
आज की शाम शमा से बाते कर लूं

sign

by Panna

तेरी आवाज में हम डूब जाते है

October 6, 2015 in ग़ज़ल

तेरी आवाज में हम डूब जाते है
तुझसे हम कुछ कह नहीं पाते है

हाल ए दिल कैसे करें बयां अपना
दिल की हर धडकन में तुझे सजाते है

गालिब बना दिया हमें तेरी मोहब्बत ने
तनहाइयों में भी बस तुझे गाते है

यकीन है एक दिन मिलेगीं नजरें तुझसे
हर लम्हा यही सोचकर बिताते है

शम्मा से बस एक मुलाकात की खातिर
परवाने पागल शम्मा मे जल जाते है

sign

by Panna

समंदर में इक कश्ती है छोटी सी

October 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी

समंदर में इक कश्ती है छोटी सी

कभी रोती थी रेत के दरिया में

अब दरिया अश्क में तैरती है..

by Panna

कुछ कमाल की बात है

September 29, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ कमाल की बात है

उनकी आवाज में

कभी कोयल सी मधुर लगती है

कभी बिजली की कडक सी कर्कश

तो कभी बूंद बनकर बरसती है

मेरे सूखे पडे ह्रदय में

कभी बहा कर ले जाती है

डुबा देती है

समंदर के आगाज़ में

कुछ कमाल की बात है

उनकी आवाज में

by Panna

झुकी जो नजर

September 23, 2015 in शेर-ओ-शायरी

थोडा सा शरमाकर, हल्के से मुस्कुराकर झुकी जो नजर
नज़रे-नूर-ओ-रोशनी में मेरी रंगे-रूह हल्के से घुलती गयी

sign

by Panna

हाल -ए- दिल

September 16, 2015 in ग़ज़ल

हम अपना हाल -ए- दिल आपसे कहते रहे
कभी बच्चा तो कभी मासूम आप हमें कहते रहे

आज तक कोई सबक पढा न जिंदगी में हमने
ताउम्र हम आपकी आखों जाने क्या पढते रहे

इक अरसा बीत गया हम मिले नहीं आपसे
तुझसे मुलाकात के इंतजार में हम तनहा मरते रहे

न हुई सुबह न कभी रात इस दिल ए शहर में
कितने ही सूरज उगे कितने ही ढलते रहे

अनजान राहों में चलते रहे मंजिल की तलाश में
चलना ही मुसाफिर का नसीब है सो हम चलते रहे

sign

by Panna

कुछ कहने की कोशिश में है अहसास मिरे

September 15, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कुछ कहने की कोशिश में है अहसास मिरे

उमडने को आतुर है ज़ज्बात मिरे

वो तो अल्फ़ाज़ हैं कि कहीं खोये हुए है

नहीं तो इक नज़्म लिख देते अश्क मिरे

by Panna

डर

September 14, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिमट रहा हूं धीरे धीरे

इन सर्द रातों में

छिपा रहा हूं खुद को खुद में

इस बेनूर अंधेरे में

कभी कोई चीख सुनाई देती है

खामोश सी,

कभी सर्द हवाओं को चीरती पत्तों की सरसराहट,

तो कभी कहीं दूर भागती गाडी की आवाज

कभी कभी गिर पडते हैं

ठण्डेठण्डे रूखसारों पर गर्म आंसू,

कभी चल उठती है

यादों की लपटें सर्द हवाओं के बीच,

कभी डर उठता हूं पास आती अनजान आहटों से

देखता हूं बार बार बाहर बंद खिडकी से झांककर

कहीं कोई बाहर तो नहीं?

नहीं, कोई नहीं बस डर है

शायद अजीब सा

समझ नहीं आता कैसा

किसी के साथ होने का डर या,

किसी साथ जाने का ?

by Panna

काश तुम चले आते!

September 4, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

चली आतीं है अक्सर यादें तुम्हारी

मगर तुम नहीं आते

की कोशिश कई दफ़ा भूल जाने की तुम्हे

मगर भूल नहीं पाते

 

आयीं राते पूनम की कई बार

मगर हुआ चांद का दीदार

कर दिया है हमने अंधेरा अपने आशियाने में

हम उजाला अब सह नहीं पाते

काश तुम चले आते |

by Panna

एक अरसे से

August 27, 2015 in शेर-ओ-शायरी

एक अरसे से उनसे नजर नहीं मिली

जमाना गुजर गया किसी को देखे हुए

 

by Panna

रश्मि

August 27, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

धुंधलेधुंधले कोहरे में छिपती

रवि से दूर भागती

एकरश्मि

अचानक टकरा गयी मुझसे

आलोक फैल गया भव में ऐसे

उग गये हो सैकडो रवि नभ मे जैसे

सतरंगी रश्मियों से

नभ सतरंगा सा हो गया

सैकडो इन्द्रधनुष फैल गये नभ में

पलभर में कोहरा कहीं विलीन हो गया

विलीन हो गयी वोरश्मिभी

रवि के फैले आलोक में 

ढूंढ रहा हूं तब से में

उसरश्मिको

जो खो गयी दिन के उजाले में

जाने कहां गुम हो गयी

मेरी वोरश्मि

by Panna

घुल गया उनका अक्स

August 11, 2015 in ग़ज़ल

घुल गया उनका अक्स कुछ इस तरह अक्स में मेरे
आईने पर भी अब मुझे न एतबार रहा

हमारी मोहब्बत का असर हुआ उन पर इस कदर
निखर गयी ताबिश1-ए-हिना, न वो रंग ए रुख़्सार रहा

हमारी मोहब्बत पर दिखाए मौसम ने ऐसे तेवर
न वो बहार-ए-बारिश रही, न वो गुल-ए-गुलजार रहा

भरी बज्म2 में हमने अपना दिल नीलाम कर दिया
किस्मत थी हमारी कि वहां न कोई खरीददार रहा

तनहाईयों में अब जीने को जी नहीं करता
दिल को खामोश धडकनों के रूकने का इंतजार रहा

sign

1. ताबिश : चमक
2. बज़्म= सभा

by Panna

जो आँख देख ले उसे

August 9, 2015 in ग़ज़ल

जो आँख देख ले उसे वो वहीं ठहर जाती है
देखते देखते उसे शाम ओ सहर बीत जाती है

फ़लक से चाँद भी उसे देखता रहता है रातभर
उसकी रूह चाँदनी ए नूर में खिलखिलाती है

महकते फूल भी उससे आजकल जलते है
तसव्वुर से उसके फिजा सारी महक जाती है

मदहोश हो जाता है मोसम लहराए जो आचॅल उसका
जुल्फें जो खोल दे वो तो घटाऍ बरस जाती है

तनहाइयों में जब सोचता हूं उनको
शब्द ओ शायरी खुद ब खुद सज जाती है

sign

by Panna

शागिर्द ए शाम

August 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी

जब शागिर्द ए शाम तुम हो तो खल्क का ख्याल क्या करें
जुस्तजु ही नहीं किसी जबाब की तो सवाल क्या करें

sign

by Panna

You know that I stare at you often

July 28, 2015 in English Poetry

You know that I stare at you often
Look at your lively smile with frozen eyes
I sit behind you just few aisles away
Dream about our friendship in fairy skies

When I see you my sensations become silent
Heart hosts an incessant whine in silence
Crazy feelings move over my mind
Takes me in dreamy domain, your slight glance

Your innocent beauty, your happy face
Arouse flowers in my deserted home
Amidst the glum feelings your smile stays
Like seeds encased within a pome

I do not know how long this will go
No idea whether you will reply to me someday
But waiting for that silken evening
I will kiss your starry smile one day

sign

by Panna

उसके चेहरे से …

July 22, 2015 in ग़ज़ल

उसके चेहरे से नजर हे कि हटती नहीं
वो जो मिल जाये अगर चहकती कहीं

जिन्दगी मायूस थी आज वो महका गयी
जेसे गुलशन में कोई कली खिलती कहीं

वो जो हंसी जब नजरे मेरी बहकने लगी
मन की मोम आज क्यों पिगलती गयी

महकने लगा समां चांदनी खिलने लगी
छुपने लगा चाँद क्यों आज अम्बर में कहीं

भूल निगाओं की जो आज उनसे टकरा गयी
वो बारिस बनकर मुझ पे बरसती गयी

कुछ बोलना ना चाहते थे मगर ये दिल बोल उठा
धीरे- धीरे मधुमयी महफिल जमती गयी

आँखों का नूर करता मजबूर मेरी निगाहों को
दिल के दर्पण पर उसकी तस्वीर बनती गयी

सदियों से बंद किये बेठे थे इस दिल को
मगर चुपके से वो इस दिल में उतरती गयी

तिल तिल जलता हे दिल मगर धुआं हे कि उठती नहीं
परवाना बनकर बेठे हे शमां हे की जलती नहीं

हो गयी क़यामत वो जो सामने आ गयी
दर्द ऐ दिल से गजल आज क्यों निकलती गयी

थोडा सा शरमाकर, हल्के से मुस्कुराकर झुकी जो नजर
नज़रे-नूर-ओ-रोशनी में मेरी रंगे-रूह हल्के से घुलती गयी

sign

https://poetrywithpanna.wordpress.com/

by Panna

ये कैसा तसव्वुर

July 20, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ये कैसा तसव्वुर, कैसा रब्त, कैसा वक्त है
जो कभी होता भी नहीं, कभी गुजरता भी नहीं

रब्तः संबंध

sign

by Panna

एक मुलाकात की तमन्ना मे

July 20, 2015 in ग़ज़ल

आपकी यादो को अश्कों में मिला कर पीते रहे
एक मुलाकात की तमन्ना मे हम जीते रहे

आप हमारी हकीकत तो बन न सके
ख्वाबों में ही सही हम मगर मिलते रहे

आप से ही चैन ओ सुकून वाबस्ता दिल का
बिन आपके जिंदगी क्या, बस जीते रहे

सावन, सावन सा नहीं इस तनहाई के मौसम में
हम आपको याद करते रहे और बादल बरसते रहे

जब देखा पीछे मुडकर हमने आपकी आस में
एक सूना रास्ता पाया, जिस पर तनहा हम चलते रहे

sign

by Panna

यूं इकरार ए इश्क मे तू ताखीर न कर

July 12, 2015 in शेर-ओ-शायरी

यूं इकरार ए इश्क मे तू ताखीर न कर

चले गये जो इकबार, फिर ना आयेंगे कभी

by Panna

Wait for it

July 11, 2015 in English Poetry

by Lady of Fire

by Panna

कौन कहता है

July 9, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है
ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है

वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को
वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है

(ख़लिश = चुभन, वेदना)

रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे
हर नज़ारे में ये तनवीर कहाँ होती है

(शाद = प्रसन्न), (पुरनूर = प्रकाशमान, ज्योतिर्मय), (तनवीर = रौशनी, प्रकाश)

ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत को कहाँ तक रोकें
दिल में जो बात हो आँखों से अयाँ होती है

(ज़ब्त-ए-सैलाब-ए-मुहब्बत = मुहब्बत की बाढ़ की सहनशीलता), (अयाँ = साफ़ दिखाई पड़ने वाला, स्पष्ट, ज़ाहिर)

ज़िन्दग़ी एक सुलगती-सी चिता है ‘साहिर’
शोला बनती है न ये बुझ के धुआँ होती है

-साहिर होशियारपुरी

by Panna

जिंदगी मेरी जिंदगी से परेशान है

July 5, 2015 in ग़ज़ल

जिंदगी मेरी जिंदगी से परेशान है
बात इतनी है कि लिबास मेरे रूह से अनजान है­­

तारीकी है मगर, दिया भी नहीं जला सकते है
क्या करे घर में सब लाक के सामान है

ऐसा नहीं कि कोई नहीं जहान में हमारा यहां
दोस्त है कई मगर, क्या करें नादान है

कोई कुछ जानता नहीं, समझता नहीं कोई यहां
जो लोग करीब है मेरे, दूरियों से अनजान है

घर छोड बैठ गये हैं मैखाने में आकर
कुछ नहीं तो मय के मिलने का इमकान है

ढूढ रहा हूं खुद को, कहीं कभी मिलता नहीं
चेहरे की तो नहीं, मुझे उसके दिल की पहचान है

गुजर जायेगी जिंदगी अब जिंदगी से क्या डरना
जो अब बस पल दो पल की मेहमान है

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by Panna

दर्द ए दरिया कैद है इस दिल में

July 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी

दर्द ए दरिया कैद है इस दिल में

by Panna

एक मुलाकात की तमन्ना मे

June 30, 2015 in ग़ज़ल

आपकी यादो को अश्कों में मिला कर पीते रहे
एक मुलाकात की तमन्ना मे हम जीते रहे

आप हमारी हकीकत तो बन न सके
ख्वाबों में ही सही हम मगर मिलते रहे

आप से ही चैन ओ सुकून वाबस्ता दिल का
बिन आपके जिंदगी क्या, बस जीते रहे

सावन, सावन सा नहीं इस तनहाई के मौसम में
हम आपको याद करते रहे और बादल बरसते रहे

जब देखा पीछे मुडकर हमने आपकी आस में
एक सूना रास्ता पाया, जिस पर तनहा हम चलते रहे

sign

by Panna

बरसते सावन में कभी तो भीगती होगी वो

June 27, 2015 in शेर-ओ-शायरी

बरसते सावन में कभी तो भीगती होगी वो

by Panna

कैसे करें शिकवे गिले हम उनसे

June 20, 2015 in शेर-ओ-शायरी

by Panna

ज़ाकिर भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है

June 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़ाकिर भी लिखूं तो जिक़्र उन्ही का आता है

by Panna

शाम ओ सहर उनके ख्यालों में खोए रहते है

June 17, 2015 in शेर-ओ-शायरी

शाम ओ सहर उनके ख्यालों में खोए रहते है

by Panna

अफ़साने मोहब्बत के होठों तक आ नहीं पाते

June 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी

अफ़साने मोहब्बत के होठों तक आ नहीं पाते

by Panna

न उस रात चांदनी होती

June 13, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

न उस रात चांदनी होती

by Panna

ये कैसा तसव्वुर, कैसा रब्त, कैसा वक्त है

June 13, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये कैसा तसव्वुर,  कैसा रब्त,  कैसा वक्त है

by Panna

इश्तेहार सी हो गयी है ज़िंदगी मेरी

June 3, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

ishehaar si ho gayi he zindagi meri

by Panna

शोक ए हिज़्र करूं या जश्न ए वस्ल करूं

May 2, 2015 in शेर-ओ-शायरी, हिन्दी-उर्दू कविता

shok e hizr

by Panna

गंगा की व्यथा

March 18, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन का आधार हूं मैं
भागीरथ की पुकार हूं मैं
मोक्ष का द्वार हूं मैं
तेरे पूर्वजों का उपहार हूं मैं
तेरा आज, तेरा कल हूं मैं
तुझ पर ममता का आंचल हूं मैं
हर युग की कथा हूं मैं
विचलित व्यथित व्यथा हूं मैं
तेरी मां हूं मैं, गंगा हूं मैं|

अनादि अनंत काल से
हिमगिरी से बह रही
तेरी हर पीढ़ी को
अपने पानी से सींच रही
मेरी धारों से गर्वित धरा
धन-धान से फूल रही
विडंबना है यह कैसी?
यह धरा ही मुझको भूल रही
क्ष्रद्धाएं रो रही है, विश्वास रो रहा है
प्रणय विकल रहा है, मेरा ह्रदय रो रहा है
तेरी क्ष्रध्दा का श्रोत हूं मैं
प्रणय का प्रकोष हूं मैं
मेरी मासूम बूंदो का रोष हूं मैं
तेरी मां हूं मैं, गंगा हूं मैं|

असहाय हूं मैं,लाचार हूं
सदियों से शोषण का शिकार हूं
अब तो थोडी सी अपनी उदारता का प्रमाण दो
मेरी इस दशा को थोडा तो सुधार दो
तेरे संस्कारो का क्ष्रंगार हूं मैं
तेरी संस्क्रति की गरिमा हूं मैं
तेरी मां हूं मैं, गंगा हूं मैं…. गंगा |

by Panna

तुझसे रुबरु हो लूं मेरे दिल की आरजू है

March 4, 2015 in ग़ज़ल

तुझसे रुबरु हो लूं मेरे दिल की आरजू है
तुझसे एक बार मैं कह दू, तू मेरी जुस्तजु है

भॅवरा बनकर भटकता रहा महोब्बत ए मधुवन में
चमन में चारो तरफ फैली जो तेरी खुशबु है

जल जाता है परवाना होकर पागल
जानता है जिंदगी दो पल की गुफ्तगु है

दर्द–ए–दिल–ए–दास्ता कैसे कहे तुझसे
नहीं खबर मुझे कहां मैं और कहां तू है

शायर- ए- ग़म तो मैं नहीं हूं मगर
मेरे दिल से निकली हर गज़ल में बस तू है

by Panna

उनकी उलझी हुई जुल्फ़ें

March 4, 2015 in शेर-ओ-शायरी

उनकी उलझी हुई जुल्फ़ें जब मेरे शानों पे बिखरती है
सुलझ सी जाती है मेरी उलझी हुई जिंदगी

by Panna

न उस रात चांदनी होती

March 4, 2015 in शेर-ओ-शायरी

न उस रात चांदनी होती
न वो चांद सा चेहरा दिखता
न मासूम मोहब्बत होती
न नादान दिला ताउम्र तडपता

by Panna

इस कफ़स में वो उडान, मैं कहॉ से लाऊं

February 16, 2015 in ग़ज़ल

इन परों में वो आसमान, मैं कहॉ से लाऊं
इस कफ़स में वो उडान, मैं कहॉ से लाऊं   (कफ़स  = cage)

हो गये पेड सूने इस पतझड के शागिर्द में
अब इन पर नये पत्ते, मैं कहॉ से लाऊं

जले हुए गांव में अब बन गये है नये घर
अब इन घरों में रखने को नये लोग, मैं कहॉ से लाऊं

बुझी-बुझी है जिंदगी, बुझे-बुझे से है जज्बात यहॉ
इस बुझी हुई राख में चिन्गारियॉ, मैं कहॉ से लाऊं

पथरा गयी है मेरे ख्यालों की दुनिया
अब इस दुनिया में मुस्कान, मैं कहॉ से लाऊं

by Panna

When you hold my hand

February 16, 2015 in English Poetry

When you hold my hand
When your hairs spread over my face
When your deep ecstatic eye see me
My heart remain no longer with me

When your lips touch my hand
When you put your head on my shoulder
When you whisper in my ear
I feel I am where I should be
I want to spend all my life with you

But now you left me
A long distance is between us
When I realize this, I cry
My feelings get condensed
At this premonition of separation

Perhaps in another world
In another life
We will meet
We will be together again
You will hold my hand again
I believe

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by Panna

…पुरानी नजरों से

February 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी

उनको हर रोज नये चांद सा नया पाया हमने
मगर उन्होने हमें देखा वही पुरानी नजरों से

sign

by Panna

शागिर्द ए शाम

February 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी

जब शागिर्द ए शाम तुम हो तो खल्क का ख्याल क्या करें
जुस्तजु ही नहीं किसी जबाब की तो सवाल क्या करें

sign

by Panna

अब न चांदनी रही न कोई चिराग रहा

February 16, 2015 in ग़ज़ल

अब न चांदनी रही न कोई चिराग रहा
राहों में रोशनी के लिए न कोई आफताब रहा

उनकी महोब्बत के हम मकरूज़ हो गए
उनका दो पल का प्यार हम पर उधार रहा

वेवफाई से भरी दुनिया में हम वफा को तरस गए
अब तो खुद पर भी न हमें एतबार रहा

शम्मा के दर पर बसर कर दी जिंदगी सारी
परवाने को शम्मा में जलने का इंतजार रहा

उन्हे देख देख कभी गज़ल लिखा करते थे हम
अब न वो गजल रही और न वो हॅसी गुबार रहा

sign

by Panna

कैसे करें शिकवे

February 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी

कैसे करें शिकवे गिले हम उनसे
उनकी हर मासूम खता के हम खिदमतगार है

sign

by Panna

वो आये कभी पतझङ कभी सावन की तरह

February 16, 2015 in ग़ज़ल

वो आये कभी पतझङ कभी सावन की तरह
जिंदगी हमें मिली हमेशा बस उनकी तरह

फूलों के तसव्वुर में भी हुआ उनका अहसास
आये वो मेरी जिंदगी में खिलती कली की तरह

जब से दी जगह खुदा की उनको दिल में हमने
याद करना उनको हो गया इबादत की तरह

डूब गया दिल दर्द ए गम ए महोब्बत में
बहा ले गयी हमें साहिल ए इश्क में लहरो की तरह

हुई जब रुह रुबरु उनसे जिंदगी ए महफिल में
समा गयी वो मेरी रुह में सांसो की तरह

by Panna

ये कैसा तसव्वुर, कैसा रब्त

February 16, 2015 in शेर-ओ-शायरी

ये कैसा तसव्वुर, कैसा रब्त, कैसा वक्त है
जो कभी होता भी नहीं, कभी गुजरता भी नहीं

रब्तः संबंध

 

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