समय अब भी है

May 10, 2022 in मुक्तक

हो रहा विमुख-सा मन,
न इच्छा बची ना चाह।
यह उम्र का पड़ाव,
सच में इरादों को छीन-हीन,
कर ही देता है।
वह पहले सा उत्साह,
मर ही जाता है।
वो रंग-बिरंगे सपने,
धुंधले पर ही जाते हैं।
क्या यह सच है ?
क्या मैं मान लूं !
यह बातें सही है।
कुछ नहीं किया जा सकता!
मनुष्य जीवन,
हर पल कुछ सीखता है।
बचपन से बुढ़ापे तक का,
सफर यूं ही नहीं कट जाता।
मैं क्यों मान लूं !
यह सब रुक-सा गया है।
क्या इच्छा चाह सिर्फ,
ऊर्जा से पूर्ण लोगों के लिए है!
नहीं मैं नहीं मान सकती।
मैं विरक्त नहीं जीवन से,
न जीवन की अंतिम घड़ी है।
मैं सीख सकती हूं,
अभी समय है,
समय से जीत सकती हूं,
फिर से…
बस एक नए ढंग से….।

नक्शे कदम पर चलना।

October 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कुछ लोगों का दूसरों के,
नक्शे कदम पर चलना।
यह साफ-साफ ज़ाहिर करता है…
उनका कोई वजूद है ही नहीं..
यह तो हर दूसरा,
तो कोई गैर कहता है…..

लब पर तेरा नाम….

October 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

लब पर तेरा नाम यूं बार-बार आता है,
जैसे कोई परिंदा अपना आशियाना बनाता है…..

कोरे मेरे,सपने मेरे…..

October 6, 2020 in गीत

कोरे मेरे, सपने मेरे,
कोरे ही रह जाएंगे….२
उम्मीदें देंगी,दस्तक उन तक,
उम्मीदें ही रह जाएंगी….
कोरे मेरे, सपने मेरे,
कोरे ही रह जाएंगे…२
शामें देगी,उल्फत उनको,
शामें ही रह जाएंगी…
कोरे मेरे,सपने मेरे,
कोरे ही रह जाएंगे….२
यादें लेगी, करवट उन तक,
यादें ही रह जाएंगी…
कोरे मेरे, सपने मेरे,
कोरे ही रह जाएंगे….२

मेरे बापू के सपनों का भारत।

October 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे बापू के सपनों का भारत,
अब है न जाने गुम कहीं।
न एकता की भावना है,
न देश प्रेम की बात कहीं।
सत्ता की खातिर,
जनता को मूर्ख बनाया जाता है।
मेरे बापू के सपनों का भारत,
अब है न जाने गुम कहीं।
वह देश को बढ़ाकर,
विकसित राहों पर ले जाने वाले,
न जाने वो लोग हैं गुम कहीं।
बाबू तुम वापस आ जाओ,
कर दो भारत को फिर से पुरा।
हो भाईचारा लोगों में,
न हो दुश्मनी का दायरा।
बस प्रेम, शांति, सौहार्द बने।
मेरे बापू के सपनों का भारत
फिर से एक बार बनें।

कल ही दर्द ने..

September 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कल ही दर्द ने मुझसे रो कर कहा,
बहुत सहन कर लिया मुझे तुमने।
खुदा से अब ये इबादत है,
रुबरु हो जाए सारी खुशियां तुमसे ।

एक मां की अरदास

September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इक अरदास करूं तुमसे प्रभू !
मैं रो लूंगी भाग्य को अपने,
हर दुःख को चुप्पी से सह लुंगी।
बना देना मुझे निर्भया की मां,
दिल को अपने समझा लुंगी।
मगर न बनाना मुझे,
बलात्कारी की जननी,
मैं खुद को आग लगा लुंगी।

एक और निर्भया

September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं हूं मैं हिन्दू पहले,
न ही दलित की बेटी हुं।
मैं निर्भया आज की ,
इंसाफ़ मांगती,
मैं पहले देश की बेटी हुं।
क्यों नहीं पसीजा तुम्हारा हृदय,
जब हैवानों ने मुझे शर्मसार किया,
क्यो चुप थी मीडिया सारी,
जब जिस्म मेरा तार-तार किया,
कब मैं इंसाफ पाऊंगी?
या राजनीति में उलझ ,
फिर से दम तोड़ जाऊंगी।
रहेगा फासला वर्षों का,
या पल में इंसाफ पा जाऊंगी,
….मैं निर्भया आज की…

कर्म का पेड़

September 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कर्म का पेड़, खुदा के जैसा,
परख के फल वो देता है,
किसी को कड़वा, किसी को मीठा,
मगर मिलता हमेशा मेहनत का है।

मेरा जीवन साथी

September 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं कितना भी हूं उदास,
वो हंसा ही देते हैं,
मुरझाईं कली को ,
फिर से खिला ही देते हैं,
करता होगा जमाना मोहब्बत,
अपने महबूब से,
मगर वो है कि उसे अंजाम तक
पहुंचा ही देते हैं,
और बहुत ख़ाली-खाली थी
जिन्दगी मेरी,
वो खुशियों की फुहार से
उसे भर ही देते हैं,
वो खुशियों की फुहार से
भर ही देते हैं।

बदनाम बहुत हुए

September 30, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बदनाम बहुत हुए,वो लोग;
जिन्होंने इश्क निभाया है,
अंगार कोयले-सा है ये रस्ता,
तड़पा बहुत, इस पर ,
चलकर जो आया है।

तनहाई का आलम

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

तनहाई का आलम पूरा हिमालय हो गया,
अब दो दिलों का मिलन , क्षितिज-सा लगता है।

प्रभु! मैं तुझको कैसे पाऊं।

September 29, 2020 in गीत

कौन है यहां अपना मेरा,
तुझ पर ही है, अर्पित जीवन सारा।
कौन-सी मैं व्यथा सुनाऊं,
प्रभु! मैं तुझको कैसे पाऊं।
कब तक यूं आस लगाऊ।
कुछ तो बोलो, हे प्रभु!
कब तक मैं यह ज्योति जलाऊ,
बुझ रही आशा की लौ,
कैसे इसमें प्रकाश जगाऊं,
प्रभु मैं तुझको कैसे पाऊं।

उन लम्हों को।

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब याद करती हूं,
उन लम्हों को।
एक टीस सी उठती है।
यह आंखें नम हो जाती है।
अगर तुम साथ होते।
जिंदगी खुशियों से भर जाती,
हम उदास हैं,
यह गम नहीं।
पर यह उदासी,
अकेले सही नहीं जाती।
अगर तुम साथ होते।
जब याद करती हूं ,
उन लम्हों को।
एक टीस सी उठती है।
क्यों गए दूर मुझसे,
यह बात समझ नहीं आती।
गलती क्या थी मेरी?
जो मैं बता पाती।
क्यों आए एक बार हंसाने को,
जिंदगी भर की ये बिखरी यादें,
अकेले सही नहीं जाती।

एक तन्हाई….

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक तन्हाई,
मैं खुद से पाना चाहती हूं।
अपने संग,
कुछ पल बिताना चाहती हूं।
जिंदगी में हर रंग भर कर,
उसे मिटाना चाहती हूं।
जहां कोई न हो मेरे साथ,
बस तुम्हें देखकर,
मैं मुस्कुराना चाहती हूं।

#2linershayari बहुत शिकायतें करती हूं मैं।

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहुत शिकायतें करती हूं मैं,
जानते हो तुम।
फिर भी कभी शिकायत नहीं करते।

मैं देख नहीं पाता हूं तो क्या!

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं देख नहीं पाता हूं तो क्या?
महसूस करता हूं,
लोगों की खुशियां,
और उनके गम ।
वो जो देखकर भी नहीं करते।
इतना महसूस कर चुका हूं।
इस दुनिया को,
लोगों से कहीं बेहतर ।
मेरे नहीं देख पाने से भी,
इतनी सुंदर है दुनिया ।
मैं देख नहीं पाता हूं तो क्या!

वो सिक्सर की तरह..

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो सिक्सर की तरह लगी,
आ सीने पर,
दिल जीरो पर,
बोल्ड हो गया,
खुशी मिली,
आईपीएल की तरह,
मगर मैच हमारा ,
टाई हो गया।

रात का पागलपन भी देखो!

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

रात का पागलपन भी देखो!
खत्म होती ही नहीं रात भर,
जब होता था,
सुकून ,
तब सोता था,
मगर अब ,
नींद की हिम्मत भी देखो!
आती ही नहीं रात भर।

ये जो वक्त का सितारा है

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ये जो वक्त का सितारा है,
वो बेहिसाब- सा बदलता है ,
और जब बदलता है,
तो सारी कयानात बदलती है,
फिजाएं भी बदलती हैं,

और इंसान भी बदलता है।

कभी जाहिर करना आया ही नहीं।

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कभी जाहिर करना आया ही नहीं,
तुम्हारे लिए मेरा प्यार।
अब तक खामोश है….. मेरे लब।

जहां तुम साथ थे।

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों आहत हुई मैं,
क्यों मैं गुमसुम रही।
सह रही थी, उस दर्द को।
जहां जी रही थी मैं।
याद है मुझे जब खुशियां,
चमक रही थी, इन आंखों में।
दमक रही थी, उन ख्वाबों में।
जहां तुम साथ थे।
तुम छूट गए,
टूट गई मैं।
साथ चाहती थी तुम्हारा।
तुम्हारे दूर जाने के बाद।
लौट आओ कभी,
उन ख्वाबों में।
जहां तुम साथ थे,
जहां तुम पास थे।

समेटे हुए

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

समेटते हुए ,
आ रहे हैं हम,
आज भी ,
उन दिल के टुकड़ों को,
जो वर्षों पहले टूटा था।

मासूम से सवाल

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस छोटी सी उम्र में,
देखते हो ना मुझे,
कभी ढाबों या चाय के ठेले पर,
कभी किसी गैराज में,
कभी लाल बत्ती पर ,
अखबार का बेचना,
ठेले का धकेलना,
कभी सोचा है तुमने,
क्यों अक्सर मैं दिख जाता हूं!
पन्नियों को बटोरता,
बहुत होती है मजबूरियां,
पिता का साथ न होना,
और घर को संभालना,
इस छोटी सी उम्र में,
खुद का पिता बनना।
मुझे अच्छा नहीं लगता,
वो छोटू-छोटू कहलवाना!
हां, मुझे अच्छा नहीं लगता,
किसी से खुद को कम आंकना।
कभी पूछो मुझसे!
क्या अच्छा लगता है मुझको?
हां! अच्छा लगता है!
स्कूल जाना।
रंग-बिरंगी किताबों पर,
जिल्द का चढ़ाना।
पर; कौन सुनता है!
कौन समझता है!
मेरे हालात को,
मुस्कुराकर टाल देते हैं,
मेरे मासूम से जबाव को!

यह कैसी है आपदाएं।

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह कैसी है आपदाएं,
कितना विनाश करती हैं!
छीन कर सब मेरा,
और मुझसे सवाल करती है।
बाहर की भीषण तबाही,
मेरे भीतर तक मचती है।
सुख-चैन गंवा कर जोड़ा था,
जिंदगी भी तौबा करती है।
थक कर बैठ जाऊं?
या फिर से करू,
तुम्हारा सामना।
ना जाने वो भीतर की ममता,
स्नेह ,करुणा।
जो निष्ठुर हो चुकी है,
तेरे जाने के बाद।
वह फिर से अमृत वर्षा करती हैं।
जिसे कभी अपना नहीं माना,
आज उसी को अपनाती है।
यह कैसी है आपदाएं,
कितना विनाश करती हैं।
देख कर दूसरे के आंसू,
अब अपनी कहानी याद आती है।
पत्थर-सा सीना रखने वाला मन,
आज करुण वर्षा करता है।
यह कैसी है आपदाएं,
कितना विनाश करती हैं।

नाकामी की दस्तक।

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नाकामी की दस्तक पढ़ ली मैंने,
फिर भी इंतजार करेंगे।
हम अपनी कामयाबी का…..

#2linershayari बेजुबान हम न थे।

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बेजुबान हम न थे,
बस बोलना न आया।

#2linershayari कौन सी शाम

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

यह कौन-सी शाम है,
यह कौन-सी रात है।
जो न ढलती है,
जो न कटती है।
बिन तेरे यह जिंदगी हर-पल,
सिमटती है….

छोड़कर इन आंसुओं को

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़कर इन आंसुओं को,
भाग ना सके।
और थाम भी ना सके।
गिरते रहे उसके बूंदों की तरह,
और मौसम जवां करते रहे।
जमी कुछ पथरा गई थी, इन आंखों की।
बिखरते रहे और इसे संदल करते रहे।

#2linershayariमुस्कुराकर….

September 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

मुस्कुराकर खत्म कर देती जीवन गाथा,
पर उम्मीदों नहीं सोने न दिया।

कितने पर्दे बदले….

September 29, 2020 in मुक्तक

कितने पर्दे बदले हैं,
इस जिंदगी ने।
कभी पुराने,
तो कभी नए।
कुछ फीके,
कुछ मटमैले।
और कुछ रेशम से नए।

हिदायतें देती मां मुझे….

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

है हिदायतें देती मां मुझे।
घर जल्दी आना बेटी देर न करना।
मैं सोचती हूं अक्सर!
क्या यह देश मेरा घर नहीं!
क्या यह लोग मेरा परिवार नहीं!
फिर क्यों नहीं सुरक्षित ,
मैं अपने ही घर में।
या है यह देश पराया।
है हिदायतें देती मां मुझे।
रात के अंधेरे से बचना बेटी,
सुनसान अंधेरी गलियों से दूर रहना बेटी।
मैं अक्सर यह सोचती हूं!
यह अंधेरी गलियां क्यों नहीं जगमगा उठती।
हम बेटियों के गुजरने से।
घर का अंधेरा हम अक्सर,
रौशनी से दूर कर देते हैं।
पर अंधेरी गलियां कब रौशन होगी!
मैं सोचती हूं अक्सर।
क्यों चीख रह जाती है,
अंधेरों के बीच।
अब भी मुझे,
यही लगता है।
अगर यह देश,
बेटियों का घर ना बन पाया।
तो रहेगा अफसोस यही,
घर वह है जो सुकून और चैन देता है।
है हिदायतें देती मां मुझे।

है निशानियां तेरी….

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

है निशानियां तेरी,
इन फिजाओं में।
कभी चांद तो ,
कभी सितारे कहते हैं।
कहते हैं मुड़ कर देख।
जिसे तू चाहता है,
वह वही है।
जिसे हर रोज तू पाता है।
याद वही सिमटी हुई है।
जिससे हर रोज,
तू गले लगाता है।
कभी छुप कर देख लेना।
जो कभी खत्म ही ना हो।
वह प्यार उसे कौन मिटाता है।
है निशानियां तेरी इन फिजाओं में।

मैं चुप हूं।

September 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं चुप हूं, खामोश हूं।
एक मौन दरिया हूं।
शांत हूं ,निर्मल हूं।
कभी एक आहट भी,
हिला देता था।
मेरे भीतर के तूफान को,
विचलित हो जाती थी।
मैं अपनी राहों से।
कायर थी ,
आश्रित थी।
वह आवाज,
जो दब चुकी थी।
अब निर्भय हूं,
स्वाभिमानी हूं।
क्यों जगाया तुमने,
मेरे भीतर के तूफान को।
थी मैं शांत, खामोश थी।
पर अब डरना छोड़ चुकी हूं।
स्वीकारती थी सब,
जो तुमने दिया।
वह दर्द जो मैंने सहा।
वह आंसु,
जो मैंने पिया।
अब मैं आश्रित नहीं।
एक अमूर्त विचार हूं।
सामर्थ्य रखती हूं मैं,
डूबा दू तुम्हें,
मेरे विचारों की पूर्णता से।
मेरी आजादी से,
मेरी बेपरवाही से,
जो तूम्हें भी मौन कर देगा।
मत जगाना मुझे,
मत डरना मुझे।

नए युग की सीता

September 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू खुद सक्षम बन ,
ए ! नारी शक्ति!
जमाना खुद बदल जाएगा,
बैठा है हर ज़हन में रावण,
राम कब तक तुझे बचाएगा,
तू सीता बन नए युग की,
रावण खुद मर जाएगा,
ना होगी फिर से अग्नि परीक्षा,
ना आंचल पर दाग लग पाएगा,
जरा निकल तो बाहर,
हीनभाव से
जमाना शीश झुकाएगा।

शेर की शादी में देखो (हास्यव्यंग)

September 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

शेर की शादी में देखो,
गीदड़ बराती आए हैं,
ठांट बांट सब रंग चढ़ा कर,
ब्याह रचाने आए हैं,
बन जाएगा कल से
शेर भी गीदड़
खुशी मनाने आए हैं,
शेर की शादी में देखो,
गीदड़ बराती आए हैं।

जब जब, मैं रोई!

September 28, 2020 in मुक्तक

जब-जब ,
मैं रोई!
तब-तब ,
चैन से मां ना सोई,
मां ने पाला ,
मां ने सम्भाला,
अपना निवाला,
मेरे उदर में डाला,
कोने में रोकर ,
मुझको हंसाया,
जिंदगी क्या है,
सलीका सिखाया।

अतीत की छाया

September 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अतीत की छाया पड़ने न देना,
यादों का साया दुख देता है ।
खूश रख अपने को फिलहाल से,
उम्मीद का सवेरा सुकून देता है,
लगा अनुमान मस्तिष्क से तू,
कौन बुरा, कौन अच्छा है!
ढूंढ इस पल में ही खुशियां,
मुस्कराने में क्या जाता है!

मगर ये इश्क…

September 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहुत खुश थे हम,
दुनिया में अपनी,
मगर ये इश्क !
सारी खुशियां खा गया,
कब से भुला दिया था तुमको,
तेरी यादों को,
मगर फिर अचानक क्यों,
मुझे रोना आ गया।

जज्बा जो जगा है ज़हन में

September 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जज्बा जो जगा है ज़हन में,
कुछ पाने का,
उसे कैंसर से कम ना समझना,
उबल रहा है हौसला,
फौलाद-सा,
कभी गलती से पस्त ना समझना।

बहुत मनाता है दिल मुझे

September 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बहुत मनाता है दिल मुझे ,
उसके लिए,
मगर मैं कैसे विचलित होती,
ठोकरों से उभरना सीख जो लिया ।

छोड़ दिया हमने…

September 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

छोड़ दिया है हमने;
आजकल,
उनके दिल में रहना
भला कैसे सांस लेते!
पसंद नहीं हमें भीड़ में रहना!

वे जानते हैं हमारे बारे में

September 28, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वे जानते हैं हमारे बारे में ,
मगर ,
थोड़ा आड़ में रखते हैं ,
पसंद नहीं है हमें उनका रूस जाना,
मगर ,
वह कभी-कभार रूठ जाते हैं।

न्यूज़ ना देखना दोस्त!

September 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

न्यूज़ ना देखना दोस्त !
वहां केवल भ्रम फैलाया जाता है ।
कुछेक मुद्दो के पीछे,
सत्ता को बचाया जाता है।
सब कुछ पहले से तय होता है
बहस जिस मुद्दे पर ,
उसे गर्व से रटाया जाता है,
अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी
सब छिपाकर,
गुमराह बनाया जाता है,
न्यूज़ ना देखना दोस्त!
वहां केवल भ्रम फैलाया जाता है।

ओस की बूंदों को।

September 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ओस की बुंदों को,
चमकते देखा है।
उनकी आंखों में,
कहीं बिखर न जाए।
मेरे छूने से।

जिंदगी की दौड़।

September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह जिंदगी की दौड़ है, जनाब!
यहां सब दौड़ लगाते हैं।
कोई हार कर जीतने की,
दौड़ लगाता है।
कोई जीत कर,
फिर से जीतने का,
जश्न मनाता है।
यह जिंदगी की दौड़ है, जनाब।

हे प्रभु! तुम ही तो हो।

September 27, 2020 in गीत

हे प्रभु! तुम ही तो हो।
तुम हो सृजन दाता,
तुम हो रचना निर्माता।
तुम हो जीवन की आस,
तुम ही हो निश्चित श्वास।
तुम ही हो अमूर्त प्रेम,
तुम ही दिशा और दिन।
हे प्रभु! तुम ही तो हो।

है डर मुझे आज भी।

September 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

है डर मुझे आज भी,
उन सुनसान गलियों से।
वह सन्नाटे में चिल्लाते ,
शोर की गहराइयों से।
वह डरा देती है, मुझे।
मैं जब उस ओर गुजरती हूं।
याद आता है, मुझे उसका चेहरा।
बेचारी कितनी मासूम थी वो।
गुम हो गई, उस अंधेरे में।
शोर सुना नहीं,
बस गहराइयां माप लेती हूं,
वो डर वो खौफ भाप लेती हूं।
है डर मुझे आज भी,
उन सुनसान सी गलियों से।

अपनी सूरत पर।

September 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जब उन्हें यूं घमंड हुआ,
अपनी सूरत पर।
वक्त ने भी दिखला दिया,
जब झुरिया पड़ी चेहरे पर।

नींद की चादर।

September 27, 2020 in शेर-ओ-शायरी

नींद की चादर ओढ़ कर,
सोए जमाना हो गया।
रात यूं ही कट जाती है,
और पल में सवेरा हो जाता है।

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