मिठास बढ़ने दे

November 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रागिनी गा दे
या गाए बिना सुना दे
भीतर है जो उबाल
उसे बाहर निकलने दे।
मन की जुल्फों को उलझने दे
दिल की लगी को चारों ओर
बिखरने दे।
उसकी तपिश से बर्फ पिघलने दे।
हिलोरे उठने दे,
फलों की मिठास बढ़ने दे,
अपनेपन का अहसास होने दे
खुशी के आंसू रोने दे,
अधखिले फूल खिलने दे।
त्रिपुट में लगाने को
जरा चन्दन घिसने दे,
ठण्ड में अधिक ठंड का
अहसाह करने दे,
यूँ जकड़े न रह
जरा हिलने-डुलने दे।

यह न कहो अवरोध खड़े हैं

November 27, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यह न कहो अवरोध खड़े हैं,
कैसे मंजिल को पाऊँ मैं,
जहां-तहां बाधाएं बैठी
कैसे कदम उठाऊँ मैं।
यही निराशा खुद बाधा है
जो आगे बढ़ने से पहले
डगमग कर देती है पग को
चाहे कोई कुछ भी कह ले।
भाव अगर मन में भय के हों
काली रात घना जंगल हो,
कैसे पार करे मन उसको
कैसे जंगल में मंगल हो।
मंगल मन में लाना होगा
भय को दूर भगाना होगा,
चीर गहन अंधियारे को
पथ रोशन करना होगा।
हार गया मन तो सब हारा
मन का ही यह खेल है सारा
मन में अगर बुलंदी है तो
लक्ष्य हाथ आयेगा सारा।
——– सतीश चन्द्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड

मुहौब्बत अगर आप सच में करें

November 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुहौब्बत अगर आप सच में करें तो
मुहौब्बत में ईश्वर की छाया दिखेगी,
दिखावा नहीं माँगती है मुहौब्बत,
मुहौब्बत में सच की कहानी मिलेगी।
सच्ची मुहौब्बत में धोखा करे जो,
इंसान कहने के काबिल नहीं वो,
रुलाये बिना बात के प्रिय को जो
प्रीतम कहाने के काबिल नहीं वो।
विश्वास सबसे बड़ा जिन्दगी में
अगर हो न विश्वास फिर क्या मुहौब्बत,
रखो एक – दूजे में विश्वास पूरा
सच में उसे ही कहेंगे मुहौब्बत।
न रोना है खुद ना रुलाना है उनको
हंसना है खुद फिर हंसाना है उनको
कभी मत सताओ मुहौब्बत को अपनी,
सच्ची मुहौब्बत करो अपने उनको।
—— सतीश पाण्डेय, चम्पावत

मेहनत

November 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पसीना बहाना जरूरी है तेरा,
तभी तो कदम लक्ष्य चूमेगा तेरा।
सजग हो स्वयं को लगा श्रम पथ पर,
सवेरा है जग जा, आलस्य मत कर।
तेरी राह देखे खड़ी है बुलंदी
कर ले तू मेहनत से अक़्दबंदी,
निशाना लगा आंख पर मत्स्य के तू
पायेगा पल-पल फतह सत्य की तू।
परिश्रम का फल मिलेगा सभी को
लगा पेड़, फल-फूल देगा कभी तो।
कंटक रहित राह मेहनत होगी
तेरी सफल चाह मेहनत से होगी।
उलझन नहीं एक मंजिल पकड़ ले
जाने न दे हाथ से तू जकड़ ले,
नौका पकड़ एक, कर पार सरिता
यही जोश देती तुझे आज कविता।
——- सतीश चंद्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड

झूठ से डरना नहीं (गीतिका छंद)

November 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बात अपनी बोल देना, बात में डरना नहीं।
धर्म की ही बात करना, धर्म से डिगना नहीं।
तू अगर है सत्य पथ पर, झूठ से डरना नहीं।
भूल कर भी बस गलत की तू मदद करना नहीं।
सत्य के राही कभी डरते नहीं झुकते नहीं,
तू अगर है सत्य पथ पर, फिर कहीं दबना नहीं।
सिर उठा कर जोश से जीना, कभी गिरना नहीं,
दूर हो सारी निराशा, हो हँसी, रोना नहीं।

चलो हार पर जीत पाने की सोचो (भुजंगप्रयात छंद में)

November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भरा दर्द है सब तरफ याद रखना
सभी दर्द में हैं मगर याद रखना,
भुला कर गमों को खुशी खोजना बस,
तभी जिन्दगी में मिलेगा मधुर रस।
न चिन्ता में रहना अधिक आप ऐसे,
सदा मस्त रहना बच्चों के जैसे,
चिन्ता तो केवल रोगों का घर है,
चिन्ता से खुद को जलाना न ऐसे।
हावी न हो पाएं गम कोई खुद पर,
मनोबल रहे उच्च, कोई नहीं डर,
चलो हार पर जीत पाने की सोचो,
गमों को उड़ा दो, खुशी को ही खोजो।
—— (भुजंगप्रयात छंद में)
———— सतीश चंद्र पाण्डेय

रात को भी धूप आती(कवित्त छंद)

November 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ठंडक की आहट से उठ रही एक डर,
कैसे कटेगा ये जाड़ा मिला न कम्बल गर।
सिर पर छत नहीं, तन ढकने को नहीं,
खुला आसमान है, जीवन है सड़क पर।
सिकुड़-सिकुड़ कर रात काटी अब तक,
फटी हुई चादर में सोया तन ढककर।
अब तक मच्छर थे, चूसते थे तन मेरा,
अब नहीं सोने देती शीत मुझे रात भर।
सड़क किनारे सोता दीन सोचे मन में ये,
रात को भी धूप आती ताप लेता घड़ी भर।
— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, चम्पावत।

आपकी पंक्तियों से

November 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी पंक्तियों से मन हुआ गदगद हमारा,
इस तरह के स्नेह का भूखा रहा है मन हमारा।
नेह यह, आशीष यह यूँ ही रहे सिर पर हमारे,
प्रेम बढ़ता ही रहे यह चाहता है मन हमारा।
@शास्त्री जी

आज उन्हें जय हिंद लिख रही

November 21, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

डटे हुए हैं सीमा में वे, रोक रहे हैं दुश्मन को,
चढ़ा रहे हैं लहू- श्रमजल, मिटा रहे हैं दुश्मन को।
ठंडक हो बरसात लगी हो, चाहे गर्मी की ऋतु हो,
सरहद के रक्षक फौलादी, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
भारत माता की रक्षा पर, तत्पर शीश चढ़ाने को,
निडर खड़े हैं रक्षक बनकर, रौंध रहे हैं दुश्मन को।
आज उन्हें जय हिंद लिख रही, अक्षरजननी यह कवि की,
जो सीमा पर डटे हुए हैं, रोक रहे हैं दुश्मन को।
मात्रिक छंद – उल्लाला छंद 15-13 में, देश प्रेम संजोती उल्लाला पंक्तियाँ।

खूब दीपक जल रहें हैं

November 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूब दीपक जल रहें हैं
जगमगाहट सब तरफ है,
खिल रही खुशियाँ अनेकों,
आज रौनक ही अलग है।
धन-धान्य हो भरपूर
सबकी कामनाएं गूंजती हैं,
आज हर घर की उमंगें
लक्ष्मी मां पूजती हैं।
लोक में उल्लास है
बच्चे पटाखों में मगन हैं
घर-घर में गृहलक्ष्मी की
चूड़ियों में
अद्भुत खनक है।
खूब दीपक जल रहें हैं
जगमगाहट सब तरफ है,
खिल रही खुशियाँ अनेकों,
आज रौनक ही अलग है।

खूब दीपक जल रहें हैं

November 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूब दीपक जल रहें हैं
जगमगाहट सब तरफ है,
खिल रही खुशियाँ अनेकों,
आज रौनक ही अलग है।
धन-धान्य हो भरपूर
सबकी कामनाएं गूंजती हैं,
आज हर घर की उमंगें
लक्ष्मी मां पूजती हैं।
लोक में उल्लास है
बच्चे पटाखों में मगन हैं
घर-घर में गृहलक्ष्मी की
चूड़ियों में
अद्भुत खनक है।
खूब दीपक जल रहें हैं
जगमगाहट सब तरफ है,
खिल रही खुशियाँ अनेकों,
आज रौनक ही अलग है।
जगमगाहट सब तरफ है,
खिल रही खुशियाँ अनेकों,
आज रौनक ही अलग है।
धन-धान्य हो भरपूर
सबकी कामनाएं गूंजती हैं,
आज हर घर की उमंगें
लक्ष्मी मां पूजती हैं।
लोक में उल्लास है
बच्चे पटाखों में मगन हैं
घर-घर में गृहलक्ष्मी की
चूड़ियों में
अद्भुत खनक है।
खूब दीपक जल रहें हैं
जगमगाहट सब तरफ है,
खिल रही खुशियाँ अनेकों,
आज रौनक ही अलग है।

ज्ञान धन वर्षा निरंतर

November 13, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लेखनी से आपकी
ज्ञान धन वर्षा निरंतर
होती रहे।
पर्व धनतेरस मुबारक
आपके आंगन को महकाती
खुशी आती रहे।
सब रहें खुश
और पायें जिंदगी में खूब धन,
मन रहे उत्साह में
हो हमेशा स्वस्थ तन।
हम जरूरतमंद की
कर पायें थोड़ी सी मदद,
ईश करना इतना सक्षम
शक्ति देना तुम अदद।
पर्व धनतेरस मुबारक
खूब आ जायें खुशी,
सब रहें खुश स्वस्थ जीवन
मत रहे कोई दुःखी।
लेखनी से आपकी
ज्ञान धन वर्षा निरंतर
होती रहे।
पर्व धनतेरस मुबारक
आपके आंगन को महकाती
खुशी आती रहे।

अरे ओ रोशनी

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अरे ओ रोशनी
क्यों टिमटिमाती हो,
क्यों इस तरह से दर्द में
खुद को रुलाती हो।
समझ लो तुम स्वयं को
एक अदभुत शक्ति हो
मत रहो दुविधा में
तुम तो वाकई में शक्ति हो।
क्यों गंवा बैठी हो पल को
क्यों भुला बैठी स्वयं को
दर्द को यूँ पाल कर
क्यों गलाती हो स्वयं को।
मत रुंधाओ अब गला
आंखों से आंसू मत बहाओ,
दूर फेंको दर्द को
खुशियों की सरिताएं बहाओ।
है भरी भरपूर क्षमता
तुम उसे महसूस कर लो,
राह में खुशियां खड़ी हैं
दौड़ कर उनको लपक लो।
आज से तुम पथ बदल लो
अश्क बिल्कुल भी न निकलें
खुद को करना है सफल तो
भाव खुशियों के ही निकलें।
स्वयं की शक्ति को महसूस कर
आगे बढ़ो जीतो जहां,
एक दिन खुशियां कदम चूमेंगी
आकर खुद यहां।

दीवाली आ रही है

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दीवाली आ रही है
फुटपाथ में भी,
नंगे -धड़ंगे, भूखे, ठिठुरते
सोचते हैं कल हम
गुब्बारे बेचेंगे।
एक दस बरस के
नन्हें के बापू ने
गुब्बारे खरीदने को
दस रुपये दिए हैं।
दस के गुब्बारे
खरीदेगा कल वो,
भर उनमें साँसों को
बेचेगा कल वो।
जो भी मिलेगा लाभ
उनसे फिर वो
खरीदेगा गुब्बारे
बेचेगा फिर वो।
शाम होते-होते
कमा कर के खुशियां
दिवाली के सपने
सजायेगा फिर वो।

हवा

November 11, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हवा से कहूँ जा खबर ले के आ जा,
किस तरह से उनके दिन कट रहे हैं।
दिवाली में कैसी शोभा है उनकी
किस तरह से उनके बम फट रहे हैं।
हवा तू जरा सा नाराज है ना
पटाखों के प्रदूषण से खफा है।
मगर वो होना ही है हवा सुन!
बातें समझता कोई कहाँ है।
जा ना खबर ला दे ना उन्हीं की
जिन्हें मन हमारा खोजता यहाँ है।

दैव पर विश्वास रखना

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन कभी छोटा न करना
दैव पर विश्वास रखना,
गर कभी मुश्किल समय हो
टूटना मत धैर्य रखना।
जिन्दगी में मुश्किलें
लाखों मिलेंगी आपको,
मुश्किलों में, ठोस बनकर
झेल लेना धैर्य रखना।
गर कभी आंखों के आगे
छा रहा हो घुप्प अंधेरा,
बैठ लेना, शान्त चित्त हो
दैव को तुम याद करना।
मन व्यथित होने न पाये
काम हिम्मत से चलाना
एक दिन कृपालु ईश्वर
चैन देंगे याद रखना।
मन कभी छोटा न करना
दैव पर विश्वास रखना,
गर कभी मुश्किल समय हो
टूटना मत धैर्य रखना।

तुम

November 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात अंधियारी थी उसमें
चाँद सी तुम साथ थी,
साँस उलझन में भरी थी,
क्या पता क्या बात थी।
चाहते थे खूब कहना
बोल पाये थे नहीं,
अश्क आये थे उमड़
हम रोक पाये थे नहीं।
तुम न होती तो उजाला
किस तरह दिखता हमें,
चैन उस भारी निशा में
किस तरह मिलता हमें।
तुम दवा सी तुम दुआ सी
जिन्दगी की रोशनी हो,
तुम हो तो जीवन है जीवन
वाकई तुम रोशनी हो।

मदद करनी होगी

October 31, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो कर सकता है उसने
उनकी मदद करनी ही होगी,
जो कड़कड़ाती ठंड में भी
खुले में सोते हैं।
छोटे छोटे बच्चे
ठिठुरते हैं तो
भीतर ही भीतर रोते हैं।
आने वाला है ठंड का मौसम
सोच कर ही उनकी
रूह कंपकंपाने लगती है।
हमें महलों में दो रजाई के बाद भी
ठंड लगती है,
वे खुले में
कम वस्त्रों में
किन शस्त्रों से
ठंड का मुकाबला करेंगे।
मदद करनी होगी।
सरकार को अभी से
व्यवस्था करनी होगी,
अन्यथा फिर वही पुराने
समाचार सुनने को मिलेंगे।

मजबूर पर हँसना नहीं अच्छा

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

करो कुछ भी मगर मजबूर पर हँसना नहीं अच्छा,
किसी का दर्द बढ़ जाये ये सब करना नहीं अच्छा।
करो कुछ भी मगर मजबूर पर हँसना नहीं अच्छा,
किसी का दर्द बढ़ जाये ये सब करना नहीं अच्छा।
शरद के शशि रजत बिखरा रहे हों आसमां से जब,
नजारा देख कर नजरें चुराना लेना नहीं अच्छा।

शरद का चाँद

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुन्दर चमकता चाँद
देखेंगे शरद का आप हम
छत पर चलेंगे रात के
नौ-दस बजे के बीच हम।
मांग लेंगे चाँद से
दाम्पत्य जीवन में बहारें,
चाँद की सुन्दर चमक
को आप हम खुद में उतारें।

हवा को मोड़ लो ना तुम

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

करेला हूँ मगर इतना भी कड़वा मत समझना तुम,
जरा सा भून लेना फिर नमक के साथ लेना तुम।
हवा की कुछ नहीं गलती उसे क्यों दोष देते हो,
जरा मेहनत करो बहती हवा को मोड़ लो ना तुम।
जरूरी है नहीं हर चीज अपने मन मुताबिक हो,
कड़ी मेहनत से जो पाओ वहीं संतोष रखना तुम।
हजारों लोग होंगे एक भी परिचित नहीं होगा,
उन्हीं में एक को अपना बनाना प्यार करना तुम।
प्यार करना, बहुत करना, मगर उस प्यार के खातिर,
गांव में वृद्ध माता है उसे मत भूल जाना तुम।

कर्मठ

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिन्दगी में भले ही हमें
आलसी लोग काफी दिखें,
पर कई इस तरह के हैं कर्मठ
अंत तक काम करते दिखे।
एक काकी है दुर्बल मगर
ऊंचे-नीचे पहाड़ी शहर में,
सिर से ढोती है भारी सिलिंडर
हांफती जा रही है वो दिनभर।
वृद्ध दादा जी फुटपाथ पर
उस कड़ी धूप में बैठकर
फर्ज अपना निभाते दिखे
जूते-चप्पल की मरमत में खप कर।
वो मुआ तो है चौदह का बस
जब से होटल में बर्तन घिसे हैं,
माँ बहन आदि परिवार के
तब से सचमुच में गेहूँ पिसे हैं।
एक है हाथ उस आदमी का
बस उसी से हथौड़ा उठा कर
पत्थर की रोड़ी बनाता
परिवार को पालता है।

सिलिंडर न मिला

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उज्ज्वला का सिलिंडर
सबको मिला,
सब खुश थे,
मगर वो रात भर सो न पाई।
यह सोचकर कि –
कोई मेरा नाम भी
लिस्ट में जोड़ देता
एक वोट तो मैं भी थी
उसकी आंखें भर आईं।
इधर दौड़ी उधर गई
गांव के मुखिया के पास गई
उसने लिस्ट देखी,
बोला आपका नाम नहीं है,
गलती मेरी नहीं
मुझसे पहले वालों की रही है।
अब तुम जाओ
जो हो पायेगा करेंगे,
तुम्हारी चिट्ठी बनाकर
ऊपर को भेजेंगे,
खुश होकर घर को आ गई,
सिलिंडर कभी न मिला
दूसरी पंचवर्षीय आ गई।

अंत्योदय राशनकार्ड

October 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उस गरीब माँ का
अब
अंत्योदय राशनकार्ड से
नाम कट गया है,
क्योंकि उसका बेटा
पिछले महीने
अठारह बरस का हो गया है,
औऱ उसने आठ सौ का
मोबाइल भी खरीद लिया है।
डेरी से लोन लेकर
गाय भी खरीदी है,
बात सौ आने सीधी है,
अठारह का बेटा, मोबाइल फोन,
दुधारू गाय
ये तीनों मानक उसे
अमीर की श्रेणी में पहुंचा चुके हैं,
इसलिए गांव के मुखिया जी उसका
राशनकार्ड बन्द करवा चुके हैं।

मना नहीं कर रही है

October 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नजारा गजब दिखा
किसी ऊँचे रसूख की पार्टी में,
बचा हुआ खाना
सामने के कूड़ादान में
फैंका गया,
कुछ उसके अंदर पड़ा
कुछ सड़क गिरा,
फिर जानवरों द्वारा
इधर उधर
फेंटा गया,
सुबह वहां पर पत्थर तोड़ती
वह माँ,
अपने नन्हें शिशु के साथ आई,
उसने बच्चे के लिए चटाई बिछाई,
वो पत्थर तोड़ने में व्यस्त है
बच्चा पास में पड़े चावल के दाने
चाव से खा रहा था,
वहीं पर एक सांड, कुछ चीटियों
तमाम तरह के कीड़े-मकोडों को
पार्टी के भोजन का
आनंद आ रहा था।
लोग बोल रहे थे कैसी है,
बच्चा गिरा हुआ खा रहा है,
मना नहीं कर रही है।

आज चार रोटी मिली हैं

October 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

करीब पांच बरस के राज
के आंखों में उस वक्त
खुशी का ठिकाना
नहीं दिख रहा था,
ऐसा लग रहा था जैसे
उस कूड़े के ढेर में
कोई खजाना हाथ
लग गया था।
थैली लेकर उछला
माँ मिल गया
मिल गया आज का गुजारा,
आज चार रोटी मिली हैं,
एक बहन एक मैं
दो आप खा लेना,
नमक है ही
पानी है ही,
चल माँ पहले खा लेते हैं।
माँ का बुलंद स्वर-
तुम इसे लेकर
झोपड़े में जाओ बेटा
बहन और तुम
दो दो खा लेना,
मैं फिर खा लूँगी।

इस बार दिवाली में

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पापा! दिवाली आने वाली है
इस बार धनतेरस में क्या लोगे?
हवेली वाले दोस्त के पापा
उसके लिए
गियर वाली साईकल ले रहे हैं।
पड़ौस के दोस्त के पप्पा, उसके लिए
बिग कार ले रहे हैं,
कोई कुछ ले रहा है
कोई कुछ ले रहा है।
पापा! आप क्या लेंगे,
बेटा!!
जो लेना है
अगली बार लेंगे,
जब कोरोना के बाद
दुबारा कहीं मेरी
जॉब लग जायेगी,
तब तक दाल रोटी
चल जाये,
संसार से रोग दूर हो जाये,
शहर में काम शुरू हो जाये,
तब खूब काम करूंगा
जो चाहो खरीद लूँगा।

नशा

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गम न झेल पाया
नशा आजमाया,
दायित्व को स्वयं के
निभा न पाया
नशा आजमाया,
बुरी संगतों में
पड़कर तूने
नशा आजमाया।
नशे पर फिर तूने
सब कुछ लुटाया,
बाद में नशे ने तुझे
गटर में गिराया।
घर परिवार सब कुछ
गंवाया।

आप क्या हैं

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बुढापा हो,
औऱ उस पर
बीमारी हो,
औऱ कोई सहारा
भी न हो,
जेब में दो कौड़ी भी न हो,
सड़क के किनारे
पड़ा हुआ शरीर हो,
उसे देखकर
यदि आपका मन
आपको झकझोरता है
तो आप
इंसान हैं।
राह चलती
कोई बिटिया
सुनहरे स्वप्न लेकर
चल रही हो,
आप उसको
कुदृष्टि से देखते हैं
तो आप हैवान हैं।

गनीमत है

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गर किसी को वफा क्या है पता है तो गनीमत है,
अर्थ क्या है मुहोब्बत का, पता है तो गनीमत है।
पेट अपना भरा हो खूब जब स्वादिष्ट भोजन से,
भूख फुटपाथ पर बैठी पता है तो गनीमत है।

यही जिंदगी हो गई उसकी

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गलती उसकी कुछ नहीं थी
कुदरत की करामात थी,
बाजार में कालिया के इस बार
बारह बच्चे हो गए।
अब उनकी परवरिश में
लग गई,
सभी को दूध पिलाना,
उतनों के लायक दूध बने
ऐसा पौष्टिक आहार मिलता कहाँ है।
दिन भर दर्जनों साथियों के साथ
मुर्गे की दुकान बाहर इंतज़ार में
बैठे बैठे जब कुछ नहीं मिलता
जानवर की उस निराशा का
पार नहीं मिलता।
बारह को, आज इधर कल उधर ढोना,
लोगों की भाग भाग सुनना।
जबरन शब्जी वाले के ठेले के नीचे,
बच्चे ले जाना,
फिर उसका लाठी उठाकर
हट हट कहना,
फिर बच्चे को मुँह में लेकर
इधर उधर को दौड़ लगाना,
बारह के बारह को दुनियादारी दिखाना,
फिर उनके बड़े होते ही
दूसरे बच्चों का दुनियाँ में आ जाना,
यही जिंदगी हो गई उसकी।

नींद में खलल

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बच्चे दिए थे उसने
चार बच्चे,
रात को ठंड थी,
चूँ चूँ, कूँ कूँ
कर रही थी वह
एक बार भौंक भी दी दर्द में,
सामने के भवन में
सो रहे आदमी की
नींद में खलल पड़ गया,
उसे गुस्सा आ गया,
उसने पत्थर से उस माँ को
लहुलूहान कर दिया।

रोटी का समाधान होगा

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ले लो ना
खीरा ले लो,
चटपटा नमक लगा खीरा,
मसालेदार चना ले लो,
ले लो जी,
गुब्बारे ले लो,
रंग बिरंगे गुब्बारे।
आप लोगे
हमारी मजबूरी
का समाधान होगा,
आप खीरा, चना लेंगे,
हमारी रोटी का
समाधान होगा।

लड़के!!

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लड़के!!
20 नम्बर की चाबी ले आ,
जा उस गाड़ी के नट खोल,
टायर में हवा भर,
जा मोबिल ऑयल ले आ,
उस गाड़ी में ग्रीस कर ले।
औजार निकाल,
औजार संभाल,
जा ग्राहकों को पानी पिला,
दौड़ के जा
अंदर से ट्यूब ले आ।
यह सब दिन भर कहते रहे
काश यह भी कह लेते
ले खाना खा ले।
थोड़ा सुस्ता ले।

फैंका हुआ दाल-चावल

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस गली में
नजारा रोज दिखता है,
प्लास्टिक की थैलियों में
भर कर फैंका हुआ दाल-चावल
हर रोज दिखता है।
खुशबू आती है,
सोचता है गरीब मन,
खुदा भी किस तरह की
किस्मत लिखता है,
किसी के पेट भरने को
दो कौर नहीं,
किसी को फैंकने को मिलता है।

माँ

October 28, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ!!
इतना बूढ़ी होने के बाद भी
तुम इतनी परवाह करती हो मेरी,
खाया या नहीं,
रात को ठंड हो रही है
कम्बल ओढ़ लेना अच्छी तरह।
पहुंचते ही फोन कर देना,
अच्छे से जाना,
लंच कर लेना,
जुकाम सा लग रहा है तुम्हें
काढ़ा बना देती हूँ।
चाय का मन है तो
चाय बना देती हूं,
सिर में हाथ लगाऊं तो
पूछती हो, सिर दर्द तो नहीं है
पेट में हाथ लगाया तो
फिर प्रश्न
यह सब कहती रहती हो,
माँ!!
इतनी बूढ़ी होने पर भी
इतनी परवाह करती हो।

इंसान कहने योग्य हैं

October 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

यदि किसी भूखे को हम
दो कौर रोटी दे सकें तो
तब कहीं सचमुच में हम
इंसान कहने योग्य हैं।
दर्द के आँसू किसी के
पोंछ पायें, रोक पायें
तब कहीं सचमुच में हम
इंसान कहने योग्य हैं।
यदि किसी निर्धन का
बालक हो पढ़ाई में भला,
हम उसे सहयोग दें
इंसान कहने योग्य हैं।
मुंह चुराने की जगह
खोजें जरूरतमन्द को
हों मदद देने खड़े,
इंसान कहने योग्य हैं,
अन्यथा पशु और हम में
एक भी अंतर नहीं है,
सच नहीं वह बात हम
इंसान कहने योग्य हैं।

खुशियों पर सबका ही हक है

October 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद ही खाऊं खुद ही पाऊँ
दूजे का हक भी खुद खाऊं
दुनिया का जो भी अच्छा हो
वह मुझे मिले, मैं सुख पाऊँ।
सब पर मेरा राज चले
सब मेरी बातों को मानें
जिसको जैसे चाहे हांकूँ,
इसको दानवता कहते हैं।
मैं भी पाऊँ और भी पायें
खुशियों पर सबका ही हक है,
दुनिया में खुशियां बरसें सब
अपना भाग बराबर खायें।
रहें स्वतंत्र सब जीने को
सबको इज्जत दूँ इज्जत लूँ
इसको मानवता कहते हैं।

जल रहा है आज रावण

October 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जल रहा है आज रावण
राम जी के वाण से,
उड़ रही हैं खूब लपटें
देखता जग शान से।
गा रहे हैं जोश से सब
राम राघव की बड़ाई
अबकी ऐसा वाण मारो
दूर भागे सब बुराई।
लाल लपटें आग ले
कहती बुराई भाग ले,
सब धुँवा सा हो गया
भस्म रावण आग से।
कुछ मिले शिक्षा हमें
रावण बुराई को लिए था
इसलिए राघव के वाणों ने
उसे छलनी किया था।
ईश के वाणों का भय लो
अब बुराई त्याग दो,
सब रहें खुश सब जियें
सबको बराबर भाग दो,
आज अपनी सब बुराई
को निकालो आग दो।

दुख किसी को भी मिले मत

October 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस सुरमयी संसार में
सबको मिले सुख भोगने को
दुख किसी को भी मिले मत
राम जी वर आज दो।
आपने त्रेता में जैसे,
उस दशानन को संहारा,
आज भी आकर
निशाचर वृति को संहार दो।
सब तरफ है छल-कपट
धोखे भरी दुर्वासना है,
आपको फिर आज मन के
रावणों को मारना है।
यदि नहीं अवतार
ले सकते हैं वैसे आप फिर
बैठकर सबके मनों में
सत्य का संचार दो।
भूख को रोटी मिले,
वस्त्र मिले, कुछ छांव हो
राम जी आओ ना फिर से
प्रेम दो सद्भाव दो।

दशहरा हो मुबारक आपको

October 25, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दशहरा पर्व यह पावन
मुबारक हो सभी को,
मिटे सारी बुराई
खिले बस खूब अच्छाई।
रावण सरीखी वृतियाँ
सब दूर हो जायें,
जीभ में शारदा माँ और
वाणी में मिठाई।
भलों का मार्ग
कांटों से रहित हो,
बुरों की बुरे कामों से
हो जाये विदाई।
प्रतिभाएं जो
मुरझा सी रही हैं,
उन्हें कुछ खाद मिल जाये
सूखते पुष्प-पौधों की
निरंतर हो सिंचाई।
दशहरा हो मुबारक आपको
दूर भागे सब बुराई,
खिले बस खूब अच्छाई
खिले बस खूब अच्छाई।

जूठे बर्तन हैं नन्हें हाथों में

October 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाल श्रम पर कविता
****************
यही तो बात हुई,
कलम,-दवात नहीं,
न उजाला है कहीं,
जूठे बर्तन हैं पड़े,
नन्हें हाथों में मेरे,
यहीं से सच कहूं तो
जिंदगी की मेरी,
सच्ची शुरुआत हुई।
इनमें चिपका हुआ है
जीवन रस,
उसको पा लूँ
उसी से जी जाऊं,
काले कोयले से
इन्हें चमका कर,
अपनी किस्मत को
जरा महका लूँ।
मुझे न देखो
इतने अचरज से,
मेरी मजबूरियां इधर लाई,
ये साधन मिला है
जीना का,
कुछ तो मिला है खाने का,
वरना भूखे थे
कई रोज रहे भूखे ही,
मिल गया जूठी पतीली में
पता जीने का।
—– डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
चम्पावत, उत्तराखंड।

दौड़ते रहता है समय

October 24, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

निरंतर चलते रहता है
दौड़ते रहता है समय,
वो देखो भाग रहा है समय
दौड़ रहा है समय।
हम कितना ही चाहें
नहीं रोक सकते
उसकी गति को,
वक्त की पटरी पर
हमें दौड़ना पड़ता है।
रुकना नहीं
दौड़ना पड़ता है,
रात बीती, दिन बीता
महीने बीते, साल बीता,
इसी तरह जीवन बीत जाता है,
कल करूँगा का सपना
सपना ही रह जाता है।
विद्वान राजा भ्रतुहरि ने
ठीक कहा था,
कि “समय को हम नहीं भोगते हैं
बल्कि हम समय द्वारा भोगे जाते हैं,
समय व्यतीत नहीं होता है,
बल्कि हम व्यतीत हो जाते हैं।”
व्यतीत ही तो हो रहे हैं
दिन हमारे,
आज-कल-परसों,
जनवरी-फरवरी—दिसम्बर।
समय भागता जा रहा निरन्तर।
हमें भी उसकी गति अनुरूप
बढ़ाने होंगे कदम
तभी अभीष्ट हासिल
कर पायेंगे हम।

आज तूफानों से कह दो

October 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज तूफानों से कह दो
आप भी पीछे रहो मत,
धूल तो उड़ ही रही है,
आप यूँ शरमाओ मत।
हम हवा के हल्के झोकों
से नहीं घबराते हैं,
यदि स्वयं तूफान आये
तब भी हम भिड़ जाते हैं।
नींद में भी होश रखते हैं,
संभल जाते हैं हम,
आप तूफानों से कह दो,
इस समय जागे हैं हम।

प्रेम करुणा, प्रेम ममता

October 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्रेम क्या है क्या बताएं
पूछते हो तो सुनो,
प्रेम जीवन प्रेम माया
प्रेम सब कुछ है सुनो।
प्रेम करुणा, प्रेम ममता
प्रेम चाहत है सुनो,
प्रेम दिल को जोड़ता है
प्रेम बंधन है सुनो।
प्रेम भाषा ज्ञान से भी
है पुरानी भावना
प्रेम की भाषा मधुर है
प्रेम है संभावना।
प्रेम हो तो हर कोई
सौ साल जीना चाहता है,
प्रेम का रसपान करना
हर कोई मन चाहता है।
जुड़ रहे नाजुक दिलों की
भावना ही प्रेम है,
स्वार्थ के बिन दूसरे को
चाहना ही प्रेम है।
प्रेम है दिखता नहीं
महसूस होता हमें,
सीखना पड़ता नहीं
खुद प्रेम होता है हमें।
प्रेम क्या क्या बताएं
खूब लम्बा है विषय,
बस कहो संक्षेप में यह
दो दिलों का है विलय।
—— डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
——— चम्पावत, उत्तराखंड।

गर हेल्मेट होता बच जाता

October 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोज है सुनने में यह आता
गर हेल्मेट होता बच जाता,
फिर भी बाइक पर चलने पर
हेल्मेट को टांगे रहते हैं।
दुर्घटना हो जाने पर फिर
सारे लोग यही कहते हैं
गर हेल्मेट होता बच जाता।
लापरवाही जिसने भी की
गँवा जिन्दगी उसने ही दी,
सिर की रक्षा को हैल्मेट है
उसे पहन लो क्या दिक्कत है।
ईश्वर न करे गर कभी
अचानक दुर्घटना हो जाती है,
हैल्मेट यदि सिर पर होगा तो
जान वहां पर बच जाती है।
नियम और कानून सड़क के
बने हैं जीवन की रक्षा को,
इनका अक्षरशः पालन हो,
बाइक पर सिर पर हैल्मेट हो।

धनुष उठायें रामचंद्र

October 23, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अधर्म का हो खत्म राज
धर्म को विजय मिले,
धनुष उठाएं रामचंद्र
विश्व को निर्भय मिले।
दैत्य दम्भ खत्म हो
अहं की बात दूर हो,
घमण्ड भूमि पर गिरे,
बचे जो बेकसूर हो।
अशिष्टता समाप्त हो
अभद्र बात बन्द हो,
असंत सच की राह लें,
कदर मिले जो संत हो।
राम शर उसे लगे
गरल हो जिसकी जीभ पर,
वर्तमान शुद्ध हो व
गर्व हो अतीत पर।
रोग व्याधियां न हों
समस्त विश्व स्वस्थ हो,
हरेक तन व मन सहित
प्रकृति साफ स्वच्छ हो।
संतान हो तो इस तरह की
मातृ-पितृ भक्त हो,
सम्मान, प्रेम, त्याग की
भी भावना सशक्त हो।
धनुष उठायें रामचंद्र,
विश्व को निर्भय मिले,
अधर्म का हो खत्म राज,
धर्म को विजय मिले।
——– डॉ0सतीश चंद्र पाण्डेय
चम्पावत, उत्तराखंड।

श्रीराम के मार्ग पर चलो

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

श्रीराम को
आदर्श मानते हो ना,
तो चलो उनके आदर्शों पर,
गुरु का सम्मान,
माता की इच्छा
और पिता के वचन की रक्षा को
राजगद्दी का त्याग,
चौदह बरस तक
वनवास ग्रहण करना।
राक्षसों का संहार,
पत्नी का वियोग,
कितना कुछ,
त्याग, आदर्श, पुरुषार्थ,
के उच्च मानक ग्रहण करो।
आओ श्रीराम के
मार्ग पर चलो,
दम्भ रूपी रावण का
संहार करो।
—— डॉ0सतीश चन्द्र पाण्डेय, चम्पावत, उत्तराखंड।

राम बन जा आज तू

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओ युवा!!
भारत के मेरे,
राम बन जा आज तू,
खुद हरा भीतर का रावण,
धर्म धनु ले हाथ तू।
बढ़ रहे हैं नित दशानन
हम जला पुतला रहे हैं,
जल गया रावण समझ कर
खूब मन बहला रहे हैं।
बम-पटाखे फोड़ कर
रावण नहीं मर पायेगा
अब मरे सचमुच में रावण
कौन यह कर पायेगा।
अब भरोसा एक ही है
जाग तू प्यारे युवक
तू नया बदलाव ला दे
मार दे रावण युवक।
पापकर्मों में लगे हैं
सैकड़ों रावण यहां,
दस कहाँ लाखों मुखौटे
ढक रहे रावण यहाँ।
दम्भ में, अभिमान में
मद में, भरे रावण यहां,
पीसते कमजोर को हैं
लूटते रावण यहां।
नारियों पर जुल्म करते
दिख रहे रावण यहां,
भ्रूण हत्या पाप करते
सैकड़ों रावण यहाँ।
अब उठा ले तू धनुष
ओ युवा!! भारत के मेरे,
राम बन जा आज तू,
रावण मिटा दे आज रे।
—– डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
चम्पावत, उत्तराखंड।

मेरे राम फिर से आओ ना

October 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे राम!
फिर से आओ
मेरे राम!
फिर से आओ ना,
बढ़ चुकी दानवों की
फौज फिर से,
आओ धरती में
चले आओ ना।
पहले दिखता था रावण
मारना आसान था,
अब तो लगता है वह
मस्तिष्क भीतर घुस गया है।
करोंड़ों दिमाग
दूषित कर चुका है।
लूट कर अस्मतें
शराफत की,
दिखावटी शरीफ
बन चुका है।
लूट लेता है
जब मिले मौका
हर तरफ धोखा ही धोखा,
आदमी आदमी से कटने लगा,
सत्य की राह का राही
भी आज थकने लगा।
आदमी राक्षस बना है यह
निरीह बेटियों को मार रहा,
चूर अपने घमंड में होकर
फिर दुराचार आज करने लगा
सैकड़ों मुख लगा के रावण वह
पाप करने लगा है, हंसने लगा।
मेरे राम अब तो आओ,
आओ ना,
धरा में दानव है
उसे मिटाओ ना,
मेरे राम फिर से आओ ना।

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