अश्क चमकीले ओस बने
मेरे अश्क जो गिरे धरा पर,
वो चमकीले ओस बने।
मुस्कुरा दिए वो दूर से देखकर,
मैं मोम सी पिघलती रही..
वो पाहन सम ठोस बने।
मेरी सिसकियों में उनको,
ठॅंडी पवन का एहसास हुआ
मेरे गर्म आंसू..
मेरी देह पिघलाते रहे॥
_______✍गीता
मेरे अश्क जो गिरे धरा पर,
वो चमकीले ओस बने।
मुस्कुरा दिए वो दूर से देखकर,
मैं मोम सी पिघलती रही..
वो पाहन सम ठोस बने।
मेरी सिसकियों में उनको,
ठॅंडी पवन का एहसास हुआ
मेरे गर्म आंसू..
मेरी देह पिघलाते रहे॥
_______✍गीता
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बहुत सुंदर रचना
हार्दिक धन्यवाद कमला जी
अतिसुंदर भाव
सादर आभार भाई जी🙏
लेखनी की प्रखरता को नमन
बहुत आभार प्रज्ञा जी