एक युद्ध..
जब आंख से एक आंसू छलका,
हो गया मन कुछ हल्का-हल्का।
निकल गया था कुछ रुका-रुका सा,
एक गुबार बीते कल का।
वजन था आंसुओं में भी,
कभी सोचा नहीं था ये
संयम रखते रखते,
ना जाने कब आंख में आंसू आए।
अंतर्मन में आरंभ हो गया
एक युद्ध…..
अपने ही विरुद्ध ।।
_____✍️गीता
कवि गीता जी की बहुत सुंदर रचना
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी
अतिसुंदर भाव
सादर धन्यवाद भाई जी 🙏