किताबें
अब किताबें सीने पर लेटकर सोती नहीं हैं,
उंगलियां मोबाइल से एक पल को जुदा अब होती नही हैं,
लगाते थे लोग महफिलें कभी खामोशियां मिटाने को,
आज महफ़िलें भी सूनी सूनी होने लगी हैं॥
राही (अंजाना)
अब किताबें सीने पर लेटकर सोती नहीं हैं,
उंगलियां मोबाइल से एक पल को जुदा अब होती नही हैं,
लगाते थे लोग महफिलें कभी खामोशियां मिटाने को,
आज महफ़िलें भी सूनी सूनी होने लगी हैं॥
राही (अंजाना)
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True sai
धन्यवाद्
धन्यवाद जी
nice one
Thanks