खून का बदला

तुम जब जब गिराओगे लाशें मैं तब तब ज़िंदा हो जाऊंगा,
शक्ल बदलेगी मगर तुम्हें हर शय मे, मैं ही नज़र आऊंगा l
मैं सपूत हूं उस मां का जिसकी मिट्टी ही मेरा गुरूर है,
दफ्न होकर उस मिट्टी में मैं मर के भी अमर हो जाऊंगा l
सुनो ऐ जवानो!, मेरी शहादत को तुम यूं ज़ाया ना जाने देना,
मैं जो लडाई छोड़कर गया हूं उसे अंजाम तक पहुंचा देना l
वो नामर्द पीठ पीछे ही वार करना जानते हैं,
तुम सामने छाती ठोक उनकी उन्हें वार करना बता देना l
सुनो ऐ दिल्ली!, अब तुम भी ये ज़ुल्म ओ सितम बंद करो,
बहुत मिल लिये गले उनसे अब उनकी चमचा गिरी बंद करो I
खून तो तुम्हारा भी खौलता होगा उन देहशतगर्दो की करतूतों से,
एक के बदले दस सर दो वरना ये कडी निंदा करना बंद करो………………ll
-हसीन ज़िद्दत
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