गर समझ न सके मेरे मौन
गर समझ न सके मेरे मौन को शब्दों को क्या समझ पाओगे
पास आकर भी तुम मन के हाशिये से दूर ही रह जाओगे
सब जायज है जुबान से निकले हुए तल्ख़ चिंगारी वास्ते तेरे
अपनी फितरत पसंद करते जो आँखों से तुम कह जाओगे
भीड़ से मुझे चुनने का शुक्रिया अदा करता हूँ
बारहा आजमाओगे तो तनहा ही तुम रह जाओगे
उन बाग़ों से तुम्हे फूलों की हसरत है भली
चुभन काटों की भला क्या तुम समझ पाओगे
अब तो लगते है अपने साये भी दूर ‘अरमान ‘
क्या इस चुप को कभी तुम भी समझ पाओगे
गर समझ न सके मेरे मौन को ——–
राजेश अरमान
वाह