गीत गाती रही रात भर

गीत बुलबुल सुनाती रही रात भर
दिल में अरमां जगाती रही रात भर

वादे गिनते रहे तेरे तारों के संग
चाँदनी दिल जलाती रही रात भर

ज़द पे किसने हवाओं की छोड़ा इसे
शम’अ ये थरथराती रही रात भर

ख्वाबों का पैरहन मेरी आँखों पे था
नींद भी आज़माती रही रात भर

इश्क़ के सुर में ये क्या हवा ने कहा
खामुशी गीत गाती रही रात भर

चाँद कतरा के मुझसे गया जब निकल
बेबसी मेरी मुस्कुराती रही रात भर

किसके ख्वाबों की आहट सुनाई पड़ी
याद तेरी जगाती रही रात भर

चुन के खुशबू गुलों से सजा दी ग़ज़ल
नाम इक गुनगुनाती रही रात भर

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Responses

New Report

Close