*चाँद ज़मीं पर*
जब रात को मैं सो जाती हूं,
तो चाँद ज़मीं पर आता है
मेरे आंगन में खूब सारी,
वो चाँदनी छोड़ के जाता है
सुबह को जब मैं उठती हूं,
उस चाँदनी से मुंह धो लेती हूं
फ़िर चाँद के जैसे ही,
मेरा मुख भी चमचम करता है।
______✍️गीता
जब रात को मैं सो जाती हूं,
तो चाँद ज़मीं पर आता है
मेरे आंगन में खूब सारी,
वो चाँदनी छोड़ के जाता है
सुबह को जब मैं उठती हूं,
उस चाँदनी से मुंह धो लेती हूं
फ़िर चाँद के जैसे ही,
मेरा मुख भी चमचम करता है।
______✍️गीता
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कवि गीता जी की यह एक सुरम्य रचना है, जिसमें सौंदर्य का भावबोध है। भारतीय जीवन में चाँद सर्वाधिक आकर्षित और प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है। यह अद्भुत परिकल्पना से रची गई कविता है। प्रतीकात्मकता का चरम उत्कर्ष है। बिम्ब बनाती उत्कृष्ट रचना है।
मेरी छोटी सी रचना की इतनी सुरम्य समालोचना की है सर आपने कि धन्यवाद करने को शब्द ही कम पड़ रहे हैं। इस कलित समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी, बहुत-बहुत आभार
बहुत खूब, सुन्दर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद पीयूष जी
अतिसुंदर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏