ज़िन्दगी मोबाइल की गुलाम हो गई..
ज़िन्दगी “मोबाइल” की गुलाम हो गई ,
“मोबाइल” के संग ही सुबह और शाम हो गई
लिखना हो तो मोबाइल, पढ़ना हो तो मोबाइल,
अब ये बातें तो आम हो गईं
मिलने के भी मोहताज ना रहे ,
“मोबाइल” से ही बातें तमाम हो गई
मोबाइल में मन लगता है सभी का,
आधी ज़िन्दगी इसी के नाम हो गई..
*****✍️गीता*****
वाह क्या बात है, बहुत ही सुंदर कविता, समसामयिक रचना, जो हो रहा है, उसे प्रकट करती हुई बेहतरीन रचना।
आपकी इस बहुमूल्य समीक्षा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी
आपका अभिवादन 🙏
वाह वाह क्या बात है, शानदार कविता
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पीयूष जी 🙏
वाह वाह बहुत खूब
शुक्रिया भाई जी 🙏
बहुत ही बढ़िया, waah waah,
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सर 🙏
बहुत सुंदर कविता
बहुत बहुत धन्यवाद आपका जोशी जी 🙏
Very nice गीता जी