जिसे भी देखा दौड़ता मिला
डगर पर जो भी मिला
वह दौड़ता भागता मिला
ज़िंदगी जिसकी भी मिली
उससे पुराना वास्ता मिला
जब भी शाम होते घर गया
दर्देदिल ही जागता मिला|
बीते साल की तरह फिर
नए साल का सुबह मिला
सर पर यूं चढ़ सा बोला
ज़िंदगी में डांटता मिला |
मुक्तक -व्यवस्था और जन- जन जब जागेगा
वर्षों की जमी मैल सब भी काटेगा |
-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी
Nice
Nice
सुन्दर
वाह बहुत सुंदर
हार्दिक स्वागत ,आदरणीय महेश गुप्ता जौनपुरीजी
wah
हार्दिक आभार nitu kandera जी
सुन्दर रचना
रचनाकार के मनोबल बढ़ाने में मदद कीं ,हार्दिक आभार Kanchan Dwivediजी आभार
Wah
हार्दिक अभिनंदन आभार आदरणीय राही अंजाना जी
Wah
वाह