तोड़ कर हर ज़ंज़ीर तूने हौंसला दिखाया है

तोड़ कर हर ज़ंज़ीर तूने हौंसला दिखाया है,

जो बुत बन चुके थे उन्हें भी तूने बोलना सिखाया है,

जुदा रही तू जैसे चाँद की चांदनी से सदियों,

फिर बखूबी तूने सबको अपना रूतबा दिखाया है,

बहुत सहमी सी रही तू घूँघट में छिपकर,

फिर दुनियाँ को बेपरवाह अपना चेहरा दिखाया है,

शक्ल ऐ इंसा पर चढ़ें जानवर के मुखौटे को,

देर से मगर तसल्ली से तूने ये पर्दा हटाया है।।
राही (अंजाना)

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