निन्दारत रहना नहीं (कुंडलिया छन्द)
निन्दारत रहना नहीं, निंदा जहर समान,
निन्दारत इंसान का, कौन करे सम्मान।
कौन करे सम्मान, सभी दूरी रखते हैं,
निन्दारत को देख, सब मन में हंसते हैं।
कहे लेखनी छोड़, मनुज निंदा की बातें,
अपने में रह मगन, न कर दूजे की बातें।
————– डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय
प्रस्तुति- कुंडलिया ,छन्द
Very very nice
“निन्दारत रहना नहीं, निंदा जहर समान,निन्दारत इंसान का, कौन करे सम्मान।”
निंदा ना करने की सीख देती हुई कवि सतीश जी की बेहद सुन्दर कुंडलिया छन्द में बहुत ही सुन्दर और प्रेरक रचना ।
“अपने में रह मगन, न कर दूजे की बातें।” बहुत ही प्रेरक पंक्तियां
अतिसुंदर भाव