निम्नकोटि की कवि हूँ मैं !!
निम्नकोटि की कवि हूँ मैं !!
हाँ, थोड़ी पागल हूँ मैं
जाने कितनी खामियां मुझमें
फिर भी सब कहते हैं
अच्छी हूँ मैं !
मैं ना लिखती गज़ल कभी
ना लिख पाती नज्म, रुबाई
पद भी मेरे टूटे-फूटे
शब्दों से भी ना बन पाई
उलझी रहती
हर एक पंक्ति
मेरी ओछी भावनाओं से
बन ना पाती एक भी कविता
दूर है मन के भावों से
सड़कछाप है मेरी भाषा
थोड़ी-सी तन्हा हूँ मैं
मेरी कविता है
लक्ष्यहीन !
निम्नकोटि की कवि हूँ मैं !!
बहुत खूब
स्वयं पर अच्छा व्यंग्य है प्रज्ञा जी का ।
सावन की सर्वश्रेष्ठ कवि,और ऐसी कविता🤔
मेरा मानना है कि स्वयं को तुच्छ ही समझना चाहिए और दूसरों को श्रेष्ठ
बहुत ही सुन्दर