बनते बिखरते क्रम
जीवन चक्र के बनते बिखरते क्रम में,
कितने पल हम मिल-बाँट जीए,
कुछ छिछले बर्तन सम,
द्रवित पल न थाम सके,
कितने मोती सम पल,
समय की धार में फिसल गए,
कितनी रातें सहमी -सहमी,
नीरस दिन यूँ निकल गए,
कितने पल छलते जीवन के,
समय के गर्त में समा गए
घनघोर काली बदली झम-झम बरसे ,
जैसे हो विहवल ऐसे ही ,
अवसाद के कुछ पल,
निर्झर बन रमते मन में ,
पल-पल जीने-मरने के क्रम से,
मन को मैंने अब आज़ाद किया,
किसने किसकी साँसो में,
कब बसना स्वीकार किया,
हृदय वीणा की धुन में,
किसने कब विश्राम किया,
जीवन चक्र के बनते बिखरते क्रम में ,
जीना हमने जान लिया ,
बनते बिखरते क्रम को ,
जीवन मैंने मान लिया ।।
https://ritusoni70ritusoni70.wordpress.com/2016/08
bahut khoob ritu ji
Thanks Sridhar ji
खूबसूरत
Thanks Manoj ji