भाव बहने दे
खुद पर किताब लिखने दे
गलत-सही किया है
आज तक जो,
उसका हिसाब लिखने दे।
बन्द आंखों से
आज भीतर तक
खुद का मिजाज
पढ़ने दे।
भीतरी कालिमा
के बीच पड़ी
चमकती मणि समान
रूह है जो,
उसके सच्चे से भाव
पढ़ने दे।
मेरे भीतर के
भाव बहने दे,
मुझको खुद से ही
बात करने दे।
स्वयं का अवलोकन करने के लिए कवि द्वारा रचित बहुत ही सुन्दर कविता… स्वयं का अवलोकन करना बहुत आवश्यक है यही विचार प्रस्तुत करती हुई , सुन्दर भाव और सुन्दर शिल्प लिए हुए एक उम्दा रचना…
इतनी बेहतरीन समीक्षा हेतु आपको बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी
बहुत ही सुन्दर भाव में प्रेषित रचना अति उत्तम है।
बहुत बहुत धन्यवाद जी