मिल्कियत-ए-इश्क
लहू के आसूँ रोना,
बमुश्किल समझ आएगा
किसी से दिल लगा लो बस
तजुर्बा खुद ही मिल जाएगा /
जर्रा-ए-ख़ामोशी में है क्या रक्खा
यहाँ कोई छुप न पाएगा
तलाश-ए-महफ़िल रखो जारी
कातिल मिल ही जाएगा /
अपने गम को गाओगे
बज़्म गमगीन हो जाएगी
किसी सीने से लग के रोना
बड़ा आराम आएगा /
© ― अश्विनी यादव
behtareen …
सादर आभार
nice
Thank you sir
wahh.. bahut khoob likha aapne.
अपने गम को गाओगे
बज़्म गमगीन हो जाएगी
किसी सीने से लग के रोना
बड़ा आराम आएगा /………waah
बहुत बहुत शुक्रिया
वाह