मीराबाई
ना राधा ना रुक्मणी,
वो कान्हा की मीरा बनी।
हरि नाम ही जपती थी,
ऐसी उसकी भक्ति थी।
विष का प्याला पी गई,
जाने कैसे वो जी गई।
भरी जवानी जोग लिया,
मीरा ने सब कुछ छोड़ दिया।
बस हरि भजन ही गाती थी,
कब सोती कब खाती थी।
रत्न सिंह की आत्मजा,
सीधी सरल रही मीरा।
राजपाट सब छोड़े थे,
कान्हा की दीवानी थी।
असीम प्रेम और भक्ति गाई,
ऐसी ही थी मीराबाई॥
_____✍गीता
अतिसुंदर रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद भाई जी🙏
ना राधा ना रुक्मणी,
वो कान्हा की मीरा बनी।
हरि नाम ही जपती थी,
ऐसी उसकी भक्ति थी।
विष का प्याला पी गई,
जाने कैसे वो जी गई।
मेरे प्रिय आराध्य कृष्ण और मीराबाई की भक्ति पर अति सुंदर कविता
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी