मुकाम
साम दाम दण्ड भेद से मुकाम तो पा लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?
काबिलियत कितनी है, गिरेबां में झाँक लो,
काबिल हकदार से उसका हक तो चुरा लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?
मुकाम पाना आसान है, वहाँ ठहरना कठिन,
गलत की जोर पे अपनी जगह तो बना लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?
ज़मीर जानता है, मुझसे भी बेहतर यहाँ पर,
ज़मीर को मारकर, खुद को बेहतर बना लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?
देवेश साखरे ‘देव’
वाह
शुक्रिया
Nice
Thanks
बहुत खूब
शुक्रिया
वाह बहुत सुंदर
धन्यवाद
Great
Thanks
Bahut khub
शुक्रिया
Bore
Thank u so much
साम दाम दण्ड भेद से मुकाम तो पा लोगे।
पर आईने में खुद से, क्या नजरें मिला लोगे?
बेहद खूबसूरत भाव …सुंदर शब्दों का चयन … आपका अभिनंदन
आभार आपका
Wah
धन्यवाद