मुक्तक-मनहरण घनाक्षरी
“मुक्तक छंद पर चार पंक्तियाँ “(घनाक्षरी)
११. ११२. २. २ २. २१. २. २२ १२. ११ २
पुण्य करना है तो माँ बाप की सेवा जरा कर लो
इनके कदमों में जन्नत है के सर अपना जरा कर दो |
कि इनकी रहमतों की छांव को खुदा भी तरशता है
के इनके साथ भी जीवन बशर अपना जरा कर लो ||
जो बोओगे वही काटोगे तुम इतना समझ लेना
जरा ठहरों और तय भी हशर अपना जरा कर लो |
बडी सीद्दत सें नाजों प्यार से पाला तुम्हे जिसने
कि लमहा जिन्दगी के अपने कुछ इनके नजर कर दो ||
उपाध्याय…
behtareen 🙂