मेरी ख्वाहिश इतनी सी
कहीं लाऊं मैं खुशियां
कहीं खुशनुमा माहौल लाती हूं
कभी लिखती हूं कविताएं
कभी भजन गुनगुनाती हूं
चहुंओर बरसे प्रेम, स्नेह
ऐसी बहार लाती हूं
हो रही स्पर्धा में
अपनों को जिताने में
चलो मैं हार जाती हूं
मेरी ख्वाहिश इतनी सी
सभी का स्नेहिल
आभार चाहती हूं
__✍️ एकता
Very nice
सच्ची बात लिखी है आपने
आपको जो बुरा कहे वह स्वयं ही बुरा होगा ऐसा मेरा मानना है यह एक साहित्यिक मंच है और आप की साहित्य साधना बहुत ही उम्दा है
धन्यवाद प्रज्ञा जी
उच्चस्तरीय रचना
सादर आभार आपका
आपकी रचना उच्च कोटि की है,बहुत सुंदर भाव 🙏🙏
वाह
धन्यवाद