मेरी ज़िंदगी का मैं ही हिस्सा नहीं था
मेरी ज़िंदगी का मैं ही हिस्सा नहीं था।
मुझे भूल जाओ मैं कोई किस्सा नहीं था।।
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मुझ पर इलजाम लगाकर के जाने वाला।
क्या कहूँ शख्स वो भी मुझ सा नही था।।
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क़िस्मत के आगें कौन क्या कर सकता था।
मिला हैं वो किसको की जिसका नहीं था।।
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इस तन्हाई की वज़ह ये भी हो सकती है की।
मिले बहुत लोग मगर कोई तुझसा नहीं था।।
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कल अचानक मुलाक़ात हो गई थी राहों में।
शख़्स कुछ बोला नहीं पर चुप सा नहीं था।।
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ताउम्र कहते रहें की पढ़ लेते है चेहरे हम भी।
पर जैसा पढ़ा था चेहरा साहिल वैसा नहीं था।।
@@@@RK@@@@
वाह बहुत सुंदर
सुन्दर रचना