मज़हब
कोई करतब कोई जादू नहीं दिखना होता है,
बस मज़हबी दीवारों से बाहिर आना होता है,
मुश्किल ये नहीं के बस दायरें बाँधे हैं दरमियाँ,
हमें खुद के ही दिल को तो समझाना होता है,
खुदा रब भगवान के आँगन की तो नहीं कहता,
पर माँ के दर पे राही सबको सर झुकना होता है।।
राही अंजाना
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वाह
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