*वंदना*
आ गई मैं मंदिर में,
धोकर अपने हाथ पैर
ताकि संग मेरे ना आए,
कोई कपट कोई बैर
घंटा बजाकर सुना मधुर स्वर,
उसकी तरंगों से धार्मिक हुए विचार
धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर,
करूं वंदना हाथ जोड़कर
पहनाऊं पुष्पों का हार,
भावुक हो भगवान को देखा
हो गई अब आनंदित “गीता’
*****✍️गीता
आ गई मैं मंदिर में,
धोकर अपने हाथ पैर
ताकि संग मेरे ना आए,
कोई कपट कोई बैर
घंटा बजाकर सुना मधुर स्वर,
उसकी तरंगों से धार्मिक हुए विचार
बहुत सुंदर विचार
समीक्षा के लिए धन्यवाद प्रज्ञा जी
वाह क्या बात है🙂
धन्यवाद ऋषि जी
बहुत सुंदर
सादर धन्यवाद भाई जी🙏