स्वतंत्रता की जश्न मनाऊँ
स्वतंत्रता की जश्न मनाऊँ
या परतंत्रता की दास्तां सुनाउँ मैं ।
मैं भारत की धरती हूँ ।
क्या-क्या बताऊँ मैं?
कुछ लोग जहां मे हमारी पूजन करते है,
तो कुछ जहां में हमारी खण्ड को अपमानित करते है ।
सहती आई हूँ मैं सदियों से ।
मौन ही रहती हूँ सदा मै ।
लेकिन मेरे पुत्रों ने मेरी लाज बचायी है ।
कोई राम बनके, कोई कृष्ण, कोई बोस, आजाद तो कोई सिंह बनके ।
मेरी मिट्टी को मस्तक पे लगाया है ।
स्वतंत्र की जश्न मनाऊँ
या परतंत्रता की दास्तां सुनाऊँ मैं ।।
कवि विकास कुमार
कुछ लोग जहां के पूजन करते
और करते हैं अपमानित कोई।
ऐसा होना था। ये पद्य विधा है। यहाँ एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं। शब्दों की, वर्णों की ,मात्राओं की, पद की, अलंकार की, रस की, अर्थ की और भाव की एक मर्यादा होती है। दुनिया हमें कवि कहती है, मैं तो अपने आप को कवि नहीं शब्द साधक मानता हूं।
कवि कहाने वाले गुण कहाँ मुझ में। अस्तु।।