हमें यूं बदनाम होना भी अच्छा लगा
कर रहे थे बसर जिंदगी गुमनाम गलियों में
आपकी मोहब्बत ने हमें मशहूर कर दिया
पुकारने लगे लोग हमें कई नामों से
हमें यूं बदनाम होना भी अच्छा लगा
आपका तस्व्वुर हमारे ज़हन में गुंजता रहता है
ज़हन से उसे जुबां पर लाने का हौसला नहीं
आपकी यादो ने जो हमें गाने को जो किया मजबूर
हमें यूं बेसूरा गाना भी अच्छा लगा
आपका अहसास ही तो हमारी जिंदगी है
बिना आपके जिंदगी का क्या मायना है
दो पल शम्मा से गुफ़्तगु करने की खातिर
परवाने को यूं जलना भी अच्छा लगा
दिल ए आईने में एक तस्वीर थी आपकी
तोड दिया वो आईना आपने बडी बेर्ददी से
मगर अब बसी हो आप हर बिखरे हूए टुकडे में
हमें यूं टूट कर बिखर जाना भी अच्छा लगा
हमें यूं टूट कर बिखर जाना भी अच्छा लगा .. Subhaan allah
dhanyabaad Vijay ji
nice poem bro!