आज की कविताएँ
ना रस है ना छंद है, अलंकार से हीन
देखो कविता हो गयी, अब की कितना दीन
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पाठक श्रोता दूर हैं, कवियों की भरमार
हिंदी कविता दुर्दशा, जैसे हो बीमार
3
तुलसी सूर कबीर, के जैसे दिखे न भाव
हिंदी कविता आज की, डूब रही है नाव
4
कविता का स्तर गिरा, खूब किया खिलवाड़
पाठक श्रोता ने किया, अपने बंद किवाड़
सत्य कहा आपने,
आशा करती हूं हम सभी के द्वारा ऐसी रचनाओं का सृजन हो जिससे मन की संतुष्टि के साथ-साथ, समाज का कल्याण हो सके।
जी बिल्कुल