आज की कविताएँ

ना रस है ना छंद है, अलंकार से हीन
देखो कविता हो गयी, अब की कितना दीन
2
पाठक श्रोता दूर हैं, कवियों की भरमार
हिंदी कविता दुर्दशा, जैसे हो बीमार
3
तुलसी सूर कबीर, के जैसे दिखे न भाव
हिंदी कविता आज की, डूब रही है नाव
4
कविता का स्तर गिरा, खूब किया खिलवाड़
पाठक श्रोता ने किया, अपने बंद किवाड़

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)

वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…

Responses

  1. सत्य कहा आपने,
    आशा करती हूं हम सभी के द्वारा ऐसी रचनाओं का सृजन हो जिससे मन की संतुष्टि के साथ-साथ, समाज का कल्याण हो सके।

New Report

Close