आधुनिक नेता:- “सच्चाई की माला फेरे”
सच्चाई की माला फेरे
घूमें नेता गली-गली
तेरा भला करने का झांसा देकर
अपना भला करते हैं
मुँह को अपने उजला करके
कालिख मन में रखते हैं
कालिख रखकर मन वो
कितना पाक-साफ रखते हैं
नहीं किसी से प्रेम उन्हें है
नहीं किसी की फ़िक्र
बस अपने भाषण वो
जन की चिन्ता करते हैं।।
कालिख रखकर मन में वो
कितना पाक-साफ बनते हैं।।
कृपया यह पढें।।
बहूत ख़ूब, आधुनिक नेताओं पर व्यंग्य करती हुई बहुत सटीक रचना
इतनी सुंदर समीक्षा के लिए गीता जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद शब्द नहीं मिल रहे किस प्रकार धन्यवाद किया जाए आपका
बहुत खूब
राकेश जी हमारी हौसला अफजाई के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद
आपकी सराहना के लिए
मेरे पास शब्द नही हैं
कवि हो तो आप जैसा
वाह प्रज्ञा जी !
क्या शब्द सागर है आपका,
सुंदर शिल्प तथा हृदय तक
जाते भाव.
एक अच्छी कविता के सभी गुण हैं
पाठक के मन को छूने वाले भाव
मुँह को अपने उजला करके
कालिख मन में रखते हैं
कालिख रखकर मन वो
कितना पाक-साफ रखते हैं
नहीं किसी से प्रेम उन्हें है
नहीं किसी की फ़िक्र
बस अपने भाषण वो
जन की चिन्ता करते हैं।।
सही कहा आपने जन की चिंता
किसे है???
आप समाज के कलुषित लोगों
का पर्दाफाश करती हैं और ऐसे मुद्दों
पर अपनी लेखनी को
खूब अच्छे से चलाती हैं
सच में आपमें श्रेष्ठ कवि के सभी गुण
विद्यमान हैं…