आपदा

जब समझ न आता ऊंच नींच , अहंकारी हो जाता तन मन
अग्रज हो की अनुज या पूज्य , व्यवहार सभी से होता सम
निर्जीव सजीव सभी को दुखी , करता रहता ये मानव जीवन
संस्कार सभ्यता का पाठ पढ़ाने , आपदा तभी तो आती है
वाणी की मधुरता न जाने , मानव की कहाँ खो जाती है
हरकत उसकी कब कहाँ किसे , सुख शीतलता पहुँचती है
संपर्क में आने वाली वस्तु , भी संदूषित हो जाती है
संस्कार सभ्यता का पाठ पढ़ाने , आपदा तभी तो आती है
अपनी निर्मित चीजे ही जब , अपनों की दूरी बढ़ती है
हर जगह हर समय गुलामी , की बस आदत सी पर जाती है
निर्माण उसकी वातावरण को सदा , क्षति ही पहुँचाती है
संस्कार सभ्यता का पाठ पढ़ाने , आपदा तभी तो आती है
जीवन उद्देश्य है सेवा भाव , पाना खोना कुछ भी नहीं
स्वार्थसिद्धि छल कपट घमंड , भला करते किसी का भी नहीं
मानव को उसकी औकात दिखने , प्रकृति माँ सदा ही आती है
संस्कार सभ्यता का पाठ पढ़ाने , आपदा तभी तो आती है

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