उगल रहा है आदमी
उगल रहा है आदमी
विष के ऐसे बोल
विष के ऐसे बोल बोलकर
थकता ना तू
मैं तेरा ही अंश
मुझको पहचाना ना तू
कैसे दिन आए
अंतस में पीर उठी है
द्वारे पर बैठी
सबसे माँ पूंछ रही है:-
आया ना बेटा मेरा जो
गया अकेला
नैन बिछाए राह
ये है दुनिया का मेला…
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मार्मिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत करती हुई संजीदा रचना