“कहाँ रहते हो”

ღღ_हम ढूँढ आए ये शहर-ए-तमाम, कहाँ रहते हो;
अरे अब आ जाओ कि हुई शाम, कहाँ रहते हो!
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इज्जत ख़ुद नहीं कमाई, विरासत ही सम्हाल लो;
कहीं हो जाए ना ये भी नीलाम, कहाँ रहते हो!
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रस्मो-रिवाज़ इस दुनिया के, तुझे जीने नहीं देंगे;
जब तक मिल जाए ना इक मुकाम, कहाँ रहते हो!
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तेरे दिल से जो कोई खेलेगा, तो समझ जाओगे;
किसे कहते हैं सुकून-ओ-आराम, कहाँ रहते हो!
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अब तुम्ही बताओ “अक्स”, और कैसे तुझे पाऊँ;
कि रब से माँगा है सुबह-ओ-शाम, कहाँ रहते हो!!….‪#‎अक्स‬
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