कुर्बानी के दम पे मिली है आजादी

कुर्बानी के दम पे मिली है आजादी
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उनसे ज्यादा है किसी का कोई तो सम्मान बोलो
जिसके आगे झुक गया है सारा हिन्दूस्तान बोलो
मुक्ति के जो मार्ग पर निकले थे ले अरमान बोलो
आखरी वही साँस तक लड़ते हुये बलिदान बोलो

मातृभूमि पर जो न्योछावर हो गये, वही प्राण थे
भारतमाता के राजदुलारे वही तो प्रिये संतान थे
जान की बाजी लगाकर काट बन्धन दासता के
बेड़ियों से मुक्त माँ को करने में ही हुये कुर्बान थे

गोद सूनी माँ का कोई कर गया दीवाना था
प्रियतमा की माँग सूनी कर हुआ अफसाना था
मिट गया कोई बहन का भाई राजदुलारा था
माँ की रक्षा में पिता के जो आँखों का तारा था

उनकी कुर्बानी के दम पे हमको मिली आजादी है
सत्तर सालों से जिसका अब देश हुआ ये आदी है
आज भी आँखों में पानी है, लबों पे वही तराना है
सबसे अच्छा देश ये प्यारा, केसरिया वही बाना है

रंग बसन्ती चोला निकला मस्तानों का टोला था
देख दीवानों को तन-मन नहीं, सिंहासन भी डोला था
उखड़ गई अंग्रेजी हुकूमत, भागी फिरंगी सेना थी
बलिदानी हुंकार से जब भी हिन्द ने जग को तोला था

आज वही अवसर है जब कुर्बानी याद दिलाती है
बाहरी ही नहीं, घर के भी भीतर की आग जलाती है
भेद-भाव के खेल से गोरे हम पर राज किये थे कल
आज भी खतरा टुकड़े-टुकड़े करनेवालों की मँडराती है

अब न चुकेंगे दिलवाले, कुर्बानी न जाएगी निष्फल
ललकारा रक्त शहीदों का, देता अब भी वही है बल
जिस बल के आजाद, भगत सिंह, नेताजी दीवाने थे
खुदीराम, सुखदेव, राजगुरू बच्चा-बच्चा परवाने थे

प्राणों की आहूति देकर क्रांति की ज्वाला सुलगाते थे
जिसमें क्रूरतम जल्लादों को भी जिंदा रोज जलाते थे
आज वही फिर बारी है लक्ष्मीबाई रणचण्डी बन जाओ
ललनाओं की देख दशा, रक्षा की करें गुहार बुलाते थे

कहाँ हमारे कुँवर सिंह हैं, गंगा की धार बुलाती है ,
जो उड़ा गई दुश्मन की शीश अब वो तलवार बुलाती है
कितने वीर सतावन से सैंतालिस तक सब याद आते हैं
आजादी के इस महापर्व पर सबको शीश नवाते हैं

हम श्रद्धा-‘प्रसून’ अर्पित कर दिल का वचनबद्ध हो जाते हैं
अंतिम साँसों तक भारतमाता की रक्षा का संकल्प उठाते हैं
जो भी इस पावन धरती का अब अपमान करे, मिट जाएगा
मरकर भी अब मातृभूमि पर पूर्वजों का गौरव, मान बढाते हैं

©प्रमोद रंजन ‘प्रसून’

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  1. उदित जिन्दल जी हार्दिक आभार । आपका तहेदिल से शुक्रिया । फेशबुक पर मेरे पेज अंजुमन पर मेरी रचनाओं का लुफ्त उठा सकते हैं निर्बाध ।

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