ग़ज़ल
मुझे ही नज़र मे बसाती है दुनिया
नज़र भी मझी से चुराती है दुनिया
ये दुनिया मेरे साथ चलती तो कैसे
कदम जब ना मुझसे मिलाती है दुनिया
ना देती है उंगली मुझे थामने ये
मगर मुझे पे उंगली उठाती है दुनिया
नज़र से नज़र तो मिलाती नही है
मगर मुझको आँखे दिखाती है दुनिया
शिकायत करूँ भी तो किस से करूँ मैं
पराई ये मुझको बताती है दुनिया
दबाती है यह ख़ाक मे ‘अक्स’ सबको
भले दे कर कंधा उठाती है दुनिया
आकर्षिका ‘अक्स’
Very nicely written gazal 👍 .
Thank you! !! Mr. Atharv
Thanks a lot for the encouragement. 🙂