गुलाब से बिखर गए
फिज़ाओं में गुलाब से बिखर गए,
उनके आने से हम और निखर गए।
सखियां भी पूछे हमें घेर कर,
किसका हुआ है यह तुम पर असर।
इठलाती, शरमाती सी फिरती हूं,
लहराती जाए मेरी नीली चुनर।
ह्रदय के तार झंकृत होने लगे,
जब से पड़ी है उनकी नजर।
नज़र न लग जाए कहीं हमें,
नज़र बचाकर भागूं इधर-उधर।।
_____✍️गीता
वाह बहुत सुंदर रुमानियत युक्त बेहतरीन रचना। कविता में उच्चस्तरीय भाव हैं। प्रस्तुति लाजवाब है। एक श्रेष्ठ कवि की श्रेष्ठ रचना। वाह
इतनी प्रेरणा देती और कवि का उत्साह बढ़ाती हुई समीक्षा के लिए बहुत-बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी
बहुत शानदार रचना
आभार पीयूष जी
रुमानी कविता
धन्यवाद