चांद की ठंडक, सूरज की गर्मी
इतना आसान नहीं होता
किसी अपने से बिछड़ जाना
जलाना हर रोज दिल को पड़ता है।
याद आती है उसकी रह-रह कर
फिर भी भूल जाना पड़ता है।
भूल जाने की जद्दोजहद में
दिल के अरमान जलते बुझते हैं।
चांद की ठंडक, सूरज की गर्मी में
बदन को तपाना पड़ता है।।
अतिसुंदर
बहुत-बहुत धन्यवाद
बिरहा की वेदना को आपने अच्छे से व्यक्त किया है।
बड़ा ही मुश्किल होता है
दिल की एक-एक जज्बात को व्यक्त कर पाना ।
मगर आप इसमें महारत हासिल किए हैं।
अगर सही शब्द ना चुने जाए तो कविता स्तरीय हो जाती है।
पर आप बहुत ही सोच समझ कर अपनी कविता के लिए शब्द चुनकर पंक्तियां बनाती हैं।
तथा कम शब्दों में ही अपनी भावनाएं व्यक्त कर देती हैं।
बहुत-बहुत धन्यवाद इतनी सुंदर समीक्षा हेतु
बहुत-बहुत धन्यवाद